जाति धर्म पर कविता

जाति धर्म पर कविता

इंसान-इंसान के बीच
कितनी हैं दूरियां
इंसान-इंसान को
नहीं मानता इंसान
मानता है
किसी न किसी
जाति का
धर्म का
प्रतिनिधि
इंसान की पहचान
इंसानियत न होकर
बन गई पहचान
जाति व धर्म

हो गई परिस्थितियां
बड़ी विकट
विवाह-शादी
कार-व्यवहार
क्रय-विक्रय
सब कुछ में
दी जाती है वरीयता
अपनी जाति को
अपने धर्म को
जाति-धर्म ही
सबसे बड़ी बाधा है
मानव के विकास में

-विनोद सिल्ला©

Comments

  1. Meena Rani

    अकाट्य सत्य

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