कदम-कदम पर कविता

कदम-कदम पर कविता

यहां है
प्रतिस्पर्धा
इंसानों में
एक-दूसरे से।
आगे निकलने की
चाहे किसी के
सिर पर या गले पर
रखना पड़े पैर,
कोई परहेज़-गुरेज नहीं ।
किसी को कुचलने में
नहीं चाहता कोई
सबको साथ लेकर
आगे बढ़ना।
होती है टांग-खिंचाई
रोका जाता हैै।
आगे बढ़ने से
डाले जाते हैं अवरोध।
लगाया जाता है,
एड़ी-चोटी का जोर।
एक-दूसरे के खिलाफ
कदम-कदम पर।।

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