केंवरा यदु मीरा: मन से तृष्णा त्याग
मन से तृष्णा त्याग कर,जपे राम का नाम ।
हो तृष्णा का जब शमन,मिले मोक्ष का धाम ।।
तृष्णा मन से मारिये ,बन जाता है काल।
कौरव को ही देख लो, कितना किया बवाल ।।
जीने की है चाह बहु,रब चाहे वह होय।
तड़प तड़प कर क्या जियें, काहे मनवा रोय।।
झूठा कपट फसाद है,तृष्णा का ही मूल।
तृष्णा को तू मार दे, जगा नहीं कर भूल।।
लालच सबसे है बुरी कौड़ी तू मत जोड़ ।
अंत समय तू जा रहा, उस कौड़ी को छोड़ ।।
धन पाने की चाह ने, बना दिया है चोर ।
चक्की पीसे जेल में, चले न कोई जोर ।।
बेटा बेटा तू किया, दिया अंत में छोड़ ।
कोई तेरा है नहीं, माया से मुख मोड़ ।।
नेता बन कर तू खड़ा, पाने को सम्मान।
भरे तिजोरी रात दिन,फंदे झुले किसान ।।
तृष्णा को पहचान ले,बस बढ़ती ही जाय।
धन की तृष्णा ये कहे,और अधिक तू आय।।
केवरा यदु “मीरा “
राजिम