खादीधारी पर कविता

खादीधारी पर कविता

समय-समय पर
पनप जाते हैं
नए-नए नाम से
नए-नए वायरस
जो करते हैं संक्रमित
इंसानों को
बिना जाति-धर्म का
भेदभाव किए
ढूंढ़ा जाता है उपचार
इन वायरस का

संसद-विधानसभाओं में
चौकड़ी मारे बैठे वायरस
जाति-धर्म के नाम पर
करते हैं संक्रमित
मानवता को
नहीं हुआ आज तक
कोई अनुसंधान
इनके उपचार के लिए
सर्वाधिक खतरनाक हैं
ये खादीधारी वायरस
दिन प्रतिदिन इनका प्रकोप
बढ़ता ही जा रहा है

-विनोद सिल्ला©

दिवस आधारित कविता