विश्वास टूटने पर कविता
खण्डित जब से विश्वास हुआ है ,
मनवा सिहर गया है।
जीना दूभर लगता जाने
क्या क्या गुज़र गया है।
तिनका तिनका जोड़ घरौंदा
मिल जुल सकल बनाया।
ख्वाबों ,अरमानों ने मिल के
पूरा महल सजाया ।
वज्रपात जब हुआ नियति का
जीवन बिखर गया है ।
जीना दूभर लगता , जाने
क्या क्या गुज़र गया है।
आशाएँ सब धूमिल लगतीं ,
कैसे राह निकालूँ
उलझ गये सब रिश्ते नाते ,
कैसे स्वयं सम्भालूँ !
सब्र का बंधन टूट गया औ
सब कुछ बिखर गया है ।
जीना दूभर लगता , जाने
क्या क्या गुज़र गया है !
खण्डित जब से विश्वास हुआ है
मनवा सिहर गया है ।
जीना दूभर लगता , जाने
क्या क्या गुज़र गया है !!!
नीलम सिंह