
लाभ – हानि पर कविता – मनीभाई नवरत्न
कितने लाभ और कितने हानि-मनीभाई नवरत्न
बादल से गिरती
अमृत बनकर पानी।
प्यास फिर बुझाती
अपनी धरती रानी ।
फुटते कली शाखों पर
बगिया बनती सुहानी ।
आती फिर धरा में
नित नूतन जवानी ।
छम छम करती
सुनो बारिश की जुबानी ।
दिल छू कर गुजरे
ध्वनि ऐसी रूहानी ।
घनघोर घटा चीरती
बिजली की रवानी।
मूरत सी उभर आए
जैसे काली भवानी ।।
बड़ी मदहोश होके
आए हो इस बरस दीवानी ।
यह तो वक्त ही बताएगा
कितने लाभ और कितने हानि?
