माँ कामाख्या की कथा

माँ कामाख्या की कथा

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माँ पर कविता


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माँ कामाख्या की कथा,
बता रहा है दीन।
जिसकी सम्पति लुट चुकी,
तन-मन भी है क्षीन।।
यही दीन ऋण बोझ से ,
था संतप्त मलीन।
सूदखोर प्रति दिन कहे ,
सूद पटा दे दीन।।
था गरीब पर आन थी,
उसकी भी कुछ शेष।
माँ कामाख्या की करे,
पूजा नित्य विशेष।।
साहूकार सुबह-सुबह,
आया लेने सूद।
धन तो घर पर था नहीं,
दी दुख आँखे मूंद ।।
साहू ने यह कह दिया,
धन के बदले आज।
अपनी बेटी दो मुझे ,
करो नहीं नाराज।।
माँ कामाख्या दीन की,
मति से बोलीं बात।
आज दिवस तोहो गया,
बीत जान दे रात।।
कल मन्दिर मे पहुँच कर,
बेटी का तुम हाथ।
लेकर अपने हाथ में,
ले जाना निज साथ।।
माँ कामाख्या ने किया,
अद्भुत सा व्यवहार।
चीलों ने नोचा जहाँ,
भागा साहूकार।।
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एन्०पी०विश्वकर्मा रायपुर
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