संक्रांति पर कविता/ रेखराम साहू

                  संक्रांति

मोह-मकर से मुक्ति-पथ,में गतिमयता,क्रांति।
शपथ सुपथ पर अग्रसर,होना है संक्रांति।।

इस चरित्र से देवव्रत बने पितामह भीष्म।
बोल रहा इतिहास है,जिनके तप का ग्रीष्म।।

दक्षिण को दे दक्षिणा,उत्तर मेंं उपकार।
हो जीवन का पूर्व या,पश्चिम फैले प्यार।।

हर ऋतुओं की सृष्टि में,स्रष्टा का संदेश।
उद्भव,पालन,प्रलय में,ब्रह्मा, विष्णु, महेश।।

प्रकृति,प्रभो के प्रेम की,कृति अनुपम प्रत्यक्ष।
शांति,क्रांति,संक्रांति सब,पहिए ईश्वर अक्ष।।

रामायन भी रम्य है,कृष्णायन कमनीय।
करुणायन के प्रेम के,अयन सर्व नमनीय।।

रेखराम साहू(बिटकुला/बिलासपुर)