मनीभाई के दोहे
(1)
जंगल मंदिर बन गये , शहर हुए अब खेत।
मानव के करतूत से , हो गये पशु निश्चेत।।
(2)
मानव तेरी भूख ही , मांस नोच के खाय।
है तू हिंसक पशु बड़ा, देखत सब थर्राय।
(3)
मानव रक्षक है प्रकृति ,मानव बन शैतान ।
छोटे से सुख के लिए,काटत मुर्गा श्वान।।
(4)
प्रीत मानवी तोड़ता , मानव से ही आस ।
कभी सँजोया सृष्टि को, खेलत कभी विनाश।
(5)
चुगली औषधि होत है, मरहम जैसा काम।
परनिंदा से हो सुखी , निज निंदा श्री धाम।