मेरे वो कश्ती डुबाने चले है
रूठे महबूब को हम मनाने चले है |
अपनी मजबूरीया उनकों सुनाने चले है |
जो कहते थे तुम ही तुम हो जिंदगी मेरी |
बीच दरिया मेरे वो कश्ती डुबाने चले है |
ख्यालो ख्याबों मेरी सूरत उनका था दावा |
डाल गैरो गले बाहे वो मुझको भुलाने चले है |
टूटकर चाहा खुद से भी ज्यादा जिसको |
तोड़कर दिल मेरा दुश्मनों दिल लूटाने चले है |
यकीन हो उनको हम आज भी है आपके |
जख्मी टूटा दिल हम उनको दिखाने चले है |
खुला रखा दरवाजा दिला का खातिर उनकी |
रौंदकर पैरो तले दिल वो मुझे तड़पाने चले है |
श्याम कुँवर भारती
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद