मोह पर कविता
बहुत कठिन है आज भी ,
लोभ मोह का त्याग ।
गाँव, शहर सब देख लो ,
मतलब से जन भाग ।।
राम – नाम का जाप कर ,
राम – मंत्र है सार।
मुक्ति मिले हैं मोह से ,
जीव – जगत भव पार ।।
बिना बिगाड़े जो बने ,
ऐसा कर निर्माण ।
मोह रहित मन – भाव धर ,
उससे है कल्याण ।।
स्वार्थ सिद्ध करते सभी ,
समय रहत इंसान ।
मोह – जाल पड़कर सदा ,
भूल गए पहचान ।।
गलत मोह को छोड़कर ,
दिव्य करें शुभ कर्म ।
कहे रमा ये सर्वदा ,
वही बड़ा निज धर्म ।।
~ मनोरमा चन्द्रा “रमा”
रायपुर (छ.ग.)