दीप पर कविता
ओ दीप ! तुझे मन टेर रहा है ।
प्यासे मृग-सी अँखियाँ लेकर
पवन-पथिक को चिट्ठियाँ देकर
पथ भटके बंजारे के ज्यों
पल-पल रस्ता हेर रहा है ।
ओ दीप ! तुझे मन टेर रहा है ।
देख प्राण को निपट अकेला
लगा झूमने दुख का मेला
बरसूँगा नित पलक-धरा पर
आँसू माला फेर रहा है ।
ओ दीप ! तुझे मन टेर रहा है ।
तुझ बिन प्रियतम घोर अँधेरा
कारागृह-सा जीवन मेरा
थका हुआ यह साँस का पंछी
कर पर दीप उकेर रहा है ।
ओ दीप ! तुझे मन टेर रहा है ।
०००
अशोक दीप
जयपुर