गगनांगना छंद [सम मात्रिक] विधान – 25 मात्रा, 16,9 पर यति, चरणान्त में 212 या गालगा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
उदाहरण :
कब आओगी फिर, आँगन की, तुलसी बूझती,
किस-किस को कैसे समझाऊँ, युक्ति न सूझती।
अम्बर की बाहों में बदरी, प्रिय तुम क्यों नहीं,
भारी है जीवन की गठरी, प्रिय तुम क्यों नहीं।
– ओम नीरव