निमाई प्रधान’क्षितिज’ के हाइकु
*[1]*
*हे रघुवीर!*
*मन में रावण है*
*करो संहार ।*
*[2]*
*सदियाँ बीतीं*
*वहीं की वहीं टिकीं*
*विद्रूपताएँ ।*
*[3]*
*जाति-जंजाल*
*पैठा अंदर तक*
*करो विमर्श ।*
*[4]*
*दुःखी किसान*
*सूखे खेत हैं सारे*
*चिंता-वितान*
*[5]*
*कृषक रुष्ट*
*बचा आख़िरी रास्ता*
*क्रांति का रुख़*
*[6]*
*प्रकृति-मित्र!*
*सब भूले तुमको*
*बड़ा विचित्र!!*
*[7]*
*अथक श्रम*
*जाड़ा-घाम-बारिश*
*नहीं विश्राम*
*[8]*
*बंजर भूमि*
*फसल कहाँ से हो ?*
*हारा है वह*
*[9]*
*पके फसल*
*हर्षित है कृषक*
*हुआ सफल*
*[10]*
*सोन-बालियाँ*
*पवन संग झूमें*
*धान के खेत*
*[11]*
*आँखों में ख्व़ाब*
*फसल पक रहे*
*ब्याज तेज़ाब!!*
*-@निमाई प्रधान’क्षितिज’*