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  • जस्टीशिया(न्याय की देवी) -रेखराम साहू

    जस्टीशिया(न्याय की देवी)रेखराम साहू

    जस्टीशिया(न्याय की देवी) -रेखराम साहू

    न्याय की अवधारणा,प्रतिमूर्ति में साकार है।
    ग्रस्त जो अन्याय से,उनका लिखा उपचार है।।

    नेत्र की पट्टी प्रदर्शित कर रही निश्पक्षता।
    है तुला,हो न्याय में व्यवहार की समकक्षता।।
    न्याय के रक्षार्थ कर में शक्ति की तलवार है…

    शेष कितना मूल्य है,अब न्याय के प्रतिमान का !
    वंचना यह निर्बलों को , ढाल सत्तावान का।।
    लोभ या भय से अनेकों रूप लेता धार है।..

    व्यक्ति के स्वातंत्र्य,समता,का जहाँ सम्मान है।
    भिन्नता में भी जहाँ पर एकता का गान है।
    मान सकते हैं वहाँ ही न्याय का संसार है।..

    वक्र विधियाँ,तर्क बंकिम,अर्थ शब्दों के जटिल।
    शुल्क-शोषण,भ्रांत भाषण,कामनाएँ हैं कुटिल।।
    आवरण में दान के यह लूट का व्यापार है।..

    अब न अलगू , शेख जुम्मन की कहानी शेष है।
    पंच परमेश्वर कहाँ है!ओढ़ लेता भेष है।।
    प्रेम भी हो चंद तो,यह संधि का आधार है।..

    न्याय का सरलार्थ,सबसे प्रेम की हो भावना।
    हो सुखद संबंध सबसे,दूर हो दुर्भावना है।।
    न्याय-नियमन का यही युग-सूत्र केवल सार है।..

    रेखराम साहू

  • श्याम कैसे मिले राधा से – स्वपन बोस

    श्याम कैसे मिले राधा सेस्वपन बोस

    श्याम कैसे मिले राधा से - स्वपन बोस

    श्याम कैसे मिले राधा से।
    राधा कृष्ण तो एक है ,
    फिर भी श्याम जुदा है राधा से
    श्याम कैसे मिले राधा से,,,,,,।

    प्रेम की ये कैसी पीड़ा है आंसू हैं विरह के दोनों ओर , जैसे जल बिन मीन तरसे।
    बीन मेघ सावन में प्रेम की आंसू बरसें।
    श्याम कैसे मिले राधा से,,,,,।

    श्याम कहें उद्धव से जाओ देख आओ राधा को उनसे मेरा हाल कहना , राधा बीन मैं जी रहा हूं,
    बस यह विरह के दुःख ही है सहना
    कुछ नहीं कह पाता दिल का हाल यह के अनजान लोगों से।
    श्याम कैसे मिले राधा से,,,,,,,।

    कंस से युद्ध है , महाभारत है।
    सब में विजयी हूं। संसार समझें इस नश्वर जीवन को इसलिए गीता का ज्ञान दूं।सर्व हो पाया राधा के प्रेम से।
    श्याम कैसे मिले राधा से,,,,,।

    श्याम तो राधा बीन अधुरा है।
    राधा भी श्याम बीन अधुरी है।
    एक होकर भी जो समझे अलग है आत्मा से ।
    कैसे मिले श्याम राधा से,,,।
    कर्म फल कटे बस प्रेम से।
    फिर मिले श्याम राधा से,,,,,,।

    स्वपन बोस,, बेगाना,,
    9340433481

  • 12 महीनों पर कविता (बारहमासा कविता)

    12 महीनों पर कविता (बारहमासा कविता)

    12 महीनों पर कविता : भारतीय कालगणना में एक वर्ष में 12 मास होते हैं। महीनों पर कविता को बारहमासा कविता कहते हैं . एक वर्ष के बारह मासों के नाम ये हैं-

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    चैत्र नक्षत्र चित्रा में पूर्णिमा होने के कारण, वैशाख विशाखा में होने के,ज्येष्ठ ज्येष्ठा में, आषाढ पूर्वाषाढ़ में, श्रावण श्रवणा में, भाद्रपद पूर्वभाद्रपद में, आश्विन अश्विनी में, कार्तिक कृतिका में, अग्रहायण या मार्गशीर्ष मृगशिरा में, पौष पुष्य में, माघ मघा में, फाल्गुन उत्तराफाल्गुनी में होने के वजह इनका नाम पड़ा है.

    12 महीनों पर कविता

    प्रथम महीना चैत से गिन
    राम जनम का जिसमें दिन।।

    द्वितीय माह आया वैशाख।
    वैसाखी पंचनद की साख।।

    ज्येष्ठ मास को जान तीसरा।
    अब तो जाड़ा सबको बिसरा।।

    चौथा मास आया आषाढ़।
    नदियों में आती है बाढ़।।

    पांचवें सावन घेरे बदरी।
    झूला झूलो गाओ कजरी।।

    भादौ मास को जानो छठा।
    कृष्ण जन्म की सुन्दर छटा।।

    मास सातवां लगा कुंआर।
    दुर्गा पूजा की आई बहार।।

    कार्तिक मास आठवां आए।
    दीवाली के दीप जलाए।।

    नवां महीना आया अगहन।
    सीता बनीं राम की दुल्हन।।

    पूस मास है क्रम में दस।
    पीओ सब गन्ने का रस।।

    ग्यारहवां मास माघ को गाओ।
    समरसता का भाव जगाओ।।

    मास बारहवां फाल्गुन आया।
    साथ में होली के रंग लाया।।

    बारह मास हुए अब पूरे।
    छोड़ो न कोई काम अधूरे।।

  • समय की चाल – पद्म मुख पंडा

    समय की चाल

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    सहज नहीं, जीवन भी जीना, नित उत्साह जरूरी है।
    हार गया, जो मन से, मानव की यह आदत, बूरी है।
    आएंगे तूफ़ान किस घड़ी, किसको भला पता है,
    निर्भय होकर, रहो जूझते, मिले सफलता पूरी है
    ज्ञानार्जन है बहुत जरूरी, बिना ज्ञान क्या कर सकते?
    विद्वतजन के साथ रहें तो, ये जीवन की धूरी है!
    है परिवर्तन शील जगत, कब क्या होगा यह ज्ञात नहीं,
    चतुराई से, काम करो तो, चिन्ता की है बात नहीं!
    जीवन मरण, चक्र चलता है, देश काल के साथ सदा,
    जागरूक बनकर, रहना है, दूर रहेगी, हर विपदा!

    पद्म मुख पंडा वरिष्ठ नागरिक कवि लेखक एवम विचारक ग्राम महा पल्ली पोस्ट लोइंग
    जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़

  • बेवफ़ाई पर ग़ज़ल – माधुरी डड़सेना ” मुदिता”

    बेवफ़ाई पर ग़ज़ल

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    क्या शिकायत करें जब वफ़ा ही नहीं
    फासले बढ़ रहे अब ख़ता ही नहीं।

    क्यूं उदासी यहाँ घेर डाला हमें
    रोशनी दिल जिगर में हुआ ही नहीं।

    गर्दिशों में फँसी नाव मेरी यहाँ
    बस धुँआ ही रहा मैं जला ही नहीं ।

    आरजू थी चले हमसफ़र बनके हम
    दर्द इतना बढ़ा की दुआ ही नहीं ।

    आईना सामने रख लिया है सनम
    अब दीदार को दिल डटा ही नहीं ।

    पूछते लोग हैं क्या हुआ कुछ बता
    जानलो फूल अब तक खिला ही नहीं ।

    ताजगी सब बिगड़ने लगी उम्र की
    अब मुहब्बत भरी वो क़ज़ा ही नहीं ।

    कुछ क़दम में सफ़र का पता चल गया
    ज़ख्म ऐसा दिया की सजा ही नहीं ।

    कल मिली थी खुशी शुक्रिया आज तक
    नाम लेके जले वो शमा ही नहीं ।

    डॉ माधुरी डड़सेना” मुदिता “