जस्टीशिया(न्याय की देवी) –रेखराम साहू
न्याय की अवधारणा,प्रतिमूर्ति में साकार है।
ग्रस्त जो अन्याय से,उनका लिखा उपचार है।।
नेत्र की पट्टी प्रदर्शित कर रही निश्पक्षता।
है तुला,हो न्याय में व्यवहार की समकक्षता।।
न्याय के रक्षार्थ कर में शक्ति की तलवार है…
शेष कितना मूल्य है,अब न्याय के प्रतिमान का !
वंचना यह निर्बलों को , ढाल सत्तावान का।।
लोभ या भय से अनेकों रूप लेता धार है।..
व्यक्ति के स्वातंत्र्य,समता,का जहाँ सम्मान है।
भिन्नता में भी जहाँ पर एकता का गान है।
मान सकते हैं वहाँ ही न्याय का संसार है।..
वक्र विधियाँ,तर्क बंकिम,अर्थ शब्दों के जटिल।
शुल्क-शोषण,भ्रांत भाषण,कामनाएँ हैं कुटिल।।
आवरण में दान के यह लूट का व्यापार है।..
अब न अलगू , शेख जुम्मन की कहानी शेष है।
पंच परमेश्वर कहाँ है!ओढ़ लेता भेष है।।
प्रेम भी हो चंद तो,यह संधि का आधार है।..
न्याय का सरलार्थ,सबसे प्रेम की हो भावना।
हो सुखद संबंध सबसे,दूर हो दुर्भावना है।।
न्याय-नियमन का यही युग-सूत्र केवल सार है।..