प्रस्तुत हिंदी कविता सामाजिक क्रांति के मसीहा काशीराम कवि डिजेंद्र कुर्रे कोहिनूर द्वारा रचित है जहां पर कवि ने कांशीराम जी के जीवन परिचय को काव्य का रूप दिया हुआ है।
सामाजिक क्रांति के मसीहा – कांशीराम
गिरे पड़े पिछड़ों कुचलों को,अपने गले लगाए थे।
मानवता का धर्म जगाने,जो इस जग में आए थे।
सन उन्नीस सौ चौंतीस का, पन्द्रह मार्च रहा शुभदिन।
था पंजाबी प्रान्त जहाँ पर,जन्म खुशी फैली छिन छिन।
हरिसिंह और बिशन कौर का,घर उस दिन सुखधाम हुआ।
जन्म लिया तेजस्वी बालक,कांशी जिसका नाम हुआ।
बचपन से ही प्रखर बुद्धि के,कांशी जी उननायक थे।
बहुजन समाज मानव दल के,धीर वीर जन नायक थे।
राजनीति के पथ में जिसने,अतिशय नाम कमाये थे।
मानवता का धर्म जगाने,जो इस जग में आए थे।
प्रेम स्नेह आशीष जिन्होंने,जन जन से निर्बाध लिया।
सिख धर्म तो था उस पर भी,बौद्ध धर्म भी साध लिया।
जीवन के स्वर्णिम पल में जो,वैज्ञानिक का कर्म किया।
लेकिन जग का दुख देखा तो,जनसेवा निज धर्म किया।
जाने वह इस लक्ष्य बिंदु तक,कितने धक्के खाए थे।
मानवता का धर्म जगाने,जो इस जग में आए थे।
जांजगीर चाँपा को जिसने,कर्म क्षेत्र अपना माना।
तब जन जन ने अपने प्यारे,जन नायक को पहचाना।
जीवन भर निस्वार्थ भाव से,जनसेवा में लगे रहे।
शुभता शुचिता समता खातिर,रात्रि दिवस तक जगे रहे।
कोहिनूर के कौशल का भी ,सपने यही जगाए थे।
मानवता का धर्म जगाने,जो इस जग में आए थे।
डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”