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  • भाईचारा

    द्वेष दम्भ भूलकर अपनाएँ भाईचारा ।
    होगा खुशहाल तभी ये देश हमारा।
    विश्वास की गहरी नींव बनाकर,
    चलो कटुता मन की काटे।
    न बने किसी के दुख की वजह
    फूल खुशियों के बाँटें।
    हमारी संस्कृति यही सिखाती
    पूरा विश्व है एक परिवार।
    बैर ईर्ष्या उन्नति में बाधक
    प्रेम ही सुख का आधार।

  • परीक्षा पर कविता (poem on exam in hindi)

    परीक्षा पर कविता (poem on exam in hindi)

    यहाँ पर परीक्षा पर कविता (poem on exam in hindi) का संकलन किया है जहाँ पर कवि यह बताने की कोशिश की हैं कि इस जीवन में हर रोज परीक्षा होती है.

    परीक्षा पर कविता (poem on exam in hindi)

    हर रोज परीक्षा होती है

    जीवन है संघर्ष सदा ही
    हर दिन ही एक चुनौती है।
    कदम कदम अवरोध यहाँ है
    हर रोज परीक्षा होती है।।

    संघर्षों से क्या घबराना
    जीवन साथ सदा रहते हैं।
    हिम्मत से ही आगे बढ़ना
    सुख दुख जीवन को कहते हैं।।
    जीवन में पग पग पर चलते
    मानवता ही जब रोती है।
    कदम कदम अवरोध यहाँ है
    हर रोज परीक्षा होती है।।

    जब तक जीवन है दुनिया में
    पथ में बाधाएं आएंगी।
    हिम्मत से हम करें सामना
    बाधाएं सब मिट जाएंगी।।
    जीवन ज्योति चलेगी जब तक
    आशा कभी नहीं सोती है।
    कदम कदम अवरोध यहाँ है
    हर रोज परीक्षा होती है।।

    जीवन जीना बहुत कठिन है
    कष्ट सदा आते जाएंगे
    भय की पीड़ा को निकाल दो
    दुःख नहीं आने पाएंगे।।
    जीवन का परिणाम मृत्यु है
    अंतराल जीवन ज्योती है।
    कदम कदम अवरोध यहाँ है
    हर रोज परीक्षा होती है।।

    मानव सपने देखे प्रतिदिन
    जीवन भर सोया रहता है।।
    आए उम्र बुढ़ापे की जब
    यादों को ढोए रहता है।।
    तन मन दोनों क्षीण हुए अब
    आत्मा उसकी अब रोती है।
    कदम कदम अवरोध यहाँ है
    हर रोज परीक्षा होती है।।

    कलयुग के इस कठिन काल में
    झूठ सत्य को दबा रहा है।
    न्याय दब गया धन के नीचे
    पैसा सब कुछ चला रहा है।।
    लोभ मोह मद कोप बढ़ा है
    धरा पाप को ढोती है।
    कदम कदम अवरोध यहाँ है
    हर रोज परीक्षा होती है।।

    ✍️ डॉ एन के सेठी

  • भगत सिंह की फांसी से 12 घंटे पहले की कहानी

    लाहौर सेंट्रल जेल 23 मार्च 1931

    हुआ सवेरा एक नई बहार आई
    तूफान से मिलने देखो आंधी भी आई
    कैदियों को अजीब लगा
    जब चरत ने आकर उनसे कहा
    सभी को अपनी कोठरी में अभी के अभी जाना है
    ऊपर से आए आदेश का पालन सबको करना है

    बरकत नाई जब आकर कानों में फुसफुसाया था
    तब जाकर कैदियों को सब माजरा समझ में आया था
    राजगुरु सुखदेव भगत देश पर मिटने वाले हैं
    कायर गोरे समय से पहले फांसी देने वाले हैं

    होड़ लगी कैदियों में फिर भगत की वस्तुएं पाने की
    देख रहे थे खुशी उनमें वो सारे जमाने की
    पंजाब के नेता भीमसेन के मन में एक लालसा जगी
    पूछ बैठे भगत से जाकर बचाव की अपील क्यों नहीं की
    जवाब दिया भगत ने तो सुनकर आंखें भर आई
    मरना ही है क्रांतिकारी को इसमें कैसी रुसवाई
    मर कर के अभियान अमर अब हमको बनाना है
    इस मिट्टी का शौर्य इन गोरों को अब दिखाना है

    फांसी के कुछ क्षण पहले मेहता भी मिलने पहुंचा था
    मरने का कोई खौफ नहीं मुस्कुराता शेर देखा था
    मेहता के कहने पर दो संदेश भगत ने किए आबाद
    राष्ट्रवाद मुर्दाबाद और इंकलाब जिंदाबाद!

    बेबे को बुलाकर भगत ने बोला काम इतना कर देना
    मरने से पहले मेरी मां से खाना मुझको लाकर दे देना
    बेबे बेचारा अंतिम इच्छा पूरी ना कर पाया था
    क्योंकि गोरों ने समय से पहले उनको फांसी पर झुलाया था

    ले चले उनको फिर फांसी की तैयारी की
    इंकलाब का जयघोष कर मां की इच्छा पूरी की
    स्वर इंकलाब के नारों से अंबर को महकाया था
    हंसते-हंसते फांसी झूले फंदा गले लगाया था
    भारत मां की माटी को शीतल से सोनित कर डाला
    माता के लालों ने मर कर नाम अमर कर डाला

    चरत – जेल परहरी
    मेहता – वकील
    बेबे – जेल सफाई कर्मचारी
    ©Mr.Agwaniya

  • उपमेंद्र सक्सेना – मुहावरों पर कविता

    उपमेंद्र सक्सेना – मुहावरों पर कविता

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    नैतिकता का ओढ़ लबादा, लोग यहाँ तिलमिला रहे हैं
    और ऊँट के मुँह में जीरा, जाने कब से खिला रहे हैं।

    आज कागजी घोड़े दौड़े, कागज का वे पेट भरेंगे
    जो लिख दें वे वही ठीक है, उसे सत्य सब सिद्ध करेंगे
    चोर -चोर मौसेरे भाई, नहीं किसी से यहाँ डरेंगे
    और माफिया के चंगुल में, जाने कितने लोग मरेंगे

    हड़प लिया भूखे का भोजन, अब देखो खिलखिला रहे हैं
    और ऊँट के मुँह में जीरा, जाने कब से खिला रहे हैं।

    मानव- सेवा के बल पर जो, नाम खूब अपना चमकाएँ
    जनहित में जो आए पैसा, उसको वे खुद ही खा जाएँ
    सरकारी सुख-सुविधाओं का, वे तो इतना लाभ उठाएँ
    उनके आगे कुछ अधिकारी, भी अब नतमस्तक हो जाएँ

    आज दूसरों की दौलत वे, अपने घर में मिला रहे हैं
    और ऊँट के मुँह में जीरा, जाने कब से खिला रहे हैं।

    फँसकर यहाँ योजनाओं में, निर्धन हो जाते घनचक्कर
    लाभ न उनको मिलता कोई, लोग निकलते उनसे बचकर
    दफ्तर में दुत्कारा जाता, हार गए वे आखिर थककर
    कौन दबंगों से ले पाए, बोलो आज यहाँ पर टक्कर

    लोग दिलासा देते उनको, भूखे जो बिलबिला रहे हैं
    और ऊँट के मुँह में जीरा, जाने कब से खिला रहे हैं।

    आज आस्तीनों में छिपकर, कितने सारे नाग पले हैं
    देख न सकते यहाँ तरक्की,अपनों से वे खूब जले हैं
    जिसने उनको अपना समझा, वे उसको ही लूट चले हैं
    अंदर से काले मन वाले, बनते सबके आज भले हैं

    मीठी बातों का रस सबको, आज यहाँ पर पिला रहे हैं
    और ऊँट के मुँह में जीरा, जाने कब से खिला रहे हैं।

    रचनाकार ✍️उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उत्तर प्रदेश)

  • लोक गीत -उपमेंद्र सक्सेना

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    लोक गीत -उपमेंद्र सक्सेना

    जाकी लाठी भैंस बाइकी, बाकौ कौन नाय अबु जनि है
    कमजोरन की लुगाइनन कौ,दइयर तौ भौजाई मनि है।

    ब्याहु पड़ौसी को होबन कौ, बाके घरि आए गौंतरिया
    पपुआ ने तौ उनमैं देखी, गौंतर खाउत एक बहुरिया
    बाके पीछे बौ दीबानो, औरन कौ बौ नाहीं गिनि है
    कमजोरन की लुगाइनन कौ, दइयर तौ भौजाई मनि है।

    जाने केते बइयर डोलैं, फाँसैं केती बइयरबानी
    खेलैं चाल हियन पै अइसी, करै न कोऊ आनाकानी
    अपुनी मस्ती मैं जो झूमै, बातु नाय काहू की सुनि है
    कमजोरन की लुगाइनन कौ,दइयर तौ भौजाई मनि है।

    आजु दबंग माल हड़पत हैं, आउत है जेतो सरकारी
    केते तड़पैं लाचारी से, उनै नाय देखैं अधिकारी
    भूलि गओ औकात हियन जो, बातु- बातु पै लाठी तनि है
    कमजोरन की लुगाइनन कौ, दइयर तौ भौजाई मनि है।

    काबिल अबु घूमत सड़कन पै, ऐरे- गैरे मौजु मनाबैं
    सरकारी ठेका लइके बे, हैं उपाधियन कौ बँटबाबैं
    मूरख हियन दिखाबैं तुर्रा, आपसु मैं फिरि उनकी ठनि है
    कमजोरन की लुगाइनन कौ,दइयर तौ भौजाई मनि है।

    अपुनी जुरुआ से लड़िबै जो, औरु मेहरुहन जौरे जाबै
    बाको सबु पइसा लुटि जाबै, अपुनी करनी को फल पाबै
    फुक्कन कौ तौ सबु गरियाबैं, कोऊ उनको काम न बनि है
    कमजोरन की लुगाइनन कौ,दइयर तौ भौजाई मनि है।

    रचनाकार -✍️उपमेंद्र सक्सेना
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उत्तर प्रदेश)