भगत सिंह की फांसी से 12 घंटे पहले की कहानी

लाहौर सेंट्रल जेल 23 मार्च 1931

हुआ सवेरा एक नई बहार आई
तूफान से मिलने देखो आंधी भी आई
कैदियों को अजीब लगा
जब चरत ने आकर उनसे कहा
सभी को अपनी कोठरी में अभी के अभी जाना है
ऊपर से आए आदेश का पालन सबको करना है

बरकत नाई जब आकर कानों में फुसफुसाया था
तब जाकर कैदियों को सब माजरा समझ में आया था
राजगुरु सुखदेव भगत देश पर मिटने वाले हैं
कायर गोरे समय से पहले फांसी देने वाले हैं

होड़ लगी कैदियों में फिर भगत की वस्तुएं पाने की
देख रहे थे खुशी उनमें वो सारे जमाने की
पंजाब के नेता भीमसेन के मन में एक लालसा जगी
पूछ बैठे भगत से जाकर बचाव की अपील क्यों नहीं की
जवाब दिया भगत ने तो सुनकर आंखें भर आई
मरना ही है क्रांतिकारी को इसमें कैसी रुसवाई
मर कर के अभियान अमर अब हमको बनाना है
इस मिट्टी का शौर्य इन गोरों को अब दिखाना है

फांसी के कुछ क्षण पहले मेहता भी मिलने पहुंचा था
मरने का कोई खौफ नहीं मुस्कुराता शेर देखा था
मेहता के कहने पर दो संदेश भगत ने किए आबाद
राष्ट्रवाद मुर्दाबाद और इंकलाब जिंदाबाद!

बेबे को बुलाकर भगत ने बोला काम इतना कर देना
मरने से पहले मेरी मां से खाना मुझको लाकर दे देना
बेबे बेचारा अंतिम इच्छा पूरी ना कर पाया था
क्योंकि गोरों ने समय से पहले उनको फांसी पर झुलाया था

ले चले उनको फिर फांसी की तैयारी की
इंकलाब का जयघोष कर मां की इच्छा पूरी की
स्वर इंकलाब के नारों से अंबर को महकाया था
हंसते-हंसते फांसी झूले फंदा गले लगाया था
भारत मां की माटी को शीतल से सोनित कर डाला
माता के लालों ने मर कर नाम अमर कर डाला

चरत – जेल परहरी
मेहता – वकील
बेबे – जेल सफाई कर्मचारी
©Mr.Agwaniya

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