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  • नवनिर्माण पर कविता – विनोद सिल्ला

    नवनिर्माण पर कविता

    पत्थरों और ईंटों में
    हुआ मुकाबला
    मची होड़
    एक-दूसरे को
    मुंहतोड़ जवाब देने की

    पत्थर से ईंट
    ईंट से पत्थर
    खूब टकराए
    टूटी ईंटें
    क्षतिग्रस्त हुए पत्थर

    हो जाता मुकाबला
    दोनों में
    कौन करेगा
    सुंदर नवनिर्माण
    तब मुकाबले के साथ-साथ
    हो जाती राह प्रशस्त
    नवनिर्माण की

    बन जाते भवन
    नहर, पुल, सड़क
    व अन्य
    जीवनोपयोगी संसाधन।

    विनोद सिल्ला

  • चोर- चोर मौसेरे भइया – उपमेंद्र सक्सेना

    चोर- चोर मौसेरे भइया

    अंधिन के आगे जो रोबैं,बे अपने नैनन कौ खोबैं
    चोर -चोर मौसेरे भइया,बे काहू के सगे न होबैं।

    कच्ची टूटै आज गाँव मै,ठर्रा केते पियैं लफंगा
    पुलिस संग मैं उनके डोलै, उनसे कौन लेयगो पंगा
    रोज नदी मै खनन होत है, रेता बजरी चोरी जाबै
    रोकै कौन इसै अब बोलौ,रोकन बारो हिस्सा खाबै

    खुद फूलन कौ हड़प लेत हैं,औरन कौ बे काँटे बोबैं
    चोर- चोर मौसेरे भइया,बे काहू के सगे न होबैं।

    सीधे- सादिन की जुरुआँअब,बनी गाँव की हैं भौजाई
    पड़ैं दबंगन के चक्कर मै, हाय पुलिस ने मौज मनाई
    करै पुलिस जब खेल हियन पै,बनै गरीबन पै बा भारी
    ऐंठ दिखाबै लाचारिन पै,अपनी रखै बसूली जारी

    बाके करमन को फल बोलौ,भोले- भाले कौं लौं ढोबैं
    चोर- चोर मौसेरे भइया,बे काहू के सगे न होबैं।

    बनो ग्राम सेवक के साथहि, ग्राम सचिव छोटो अधिकारी
    सेवा करनो भूलि गए सब, बातैं करैं हियन पै न्यारी
    अच्छे-अच्छिन कौ तड़पाबै, लेखपाल लागत है दइयर
    अपनी जेब भरत है एती,आँसू पीबत देखे बइयर

    नाय निभाबैं जिम्मेदारी, अफसर हाथ हियन पै धोबैं
    चोर- चोर मौसेरे भइया,बे काहू के सगे न होबैं ।

    चलैं योजना एती सारी,होत गरीबन की है ख्वारी
    बइयरबानी हाथ मलैं अब,मुँह से उनके निकलै गारी
    मिलै न रासन उनकौ पूरो,कोटेदार चलाबै मरजी
    स्कूलन को माल हड़प के, रौब दिखाबैं बैठे सरजी

    नेता जो सत्ता मैं आबैं, खूब चैन से बे तौ सोबैं
    चोर -चोर मौसेरे भइया, बे काहू के सगे न होबैं।

    रचनाकार- ✍️उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
    बरेली (उ० प्र०)


  • नए साल की बधाई – अकिल खान



    ————– नए साल की बधाई – – – – – – – – – –

    अतीत के साए में,बीते पल गुजर गए,
    संघर्ष के मैदान में,परिश्रमी संवर गए।
    2022 में मेहनतकशों को मंजिल मिल गया,
    मुरझाए हुए,तन्हा,चेहरों में हंसी खिल गया।
    प्रकृति ने भी खुशनुमा,माहौल है सजाई,
    आप सभी लोगों को,नए साल की बधाई।

    प्रकृति अपनी रीत,हर-पल दोहराती है,
    यादों के झरोखों में,बीते लम्हें पुकारती है।
    आशाओं के मेघ,कर्म के रूप में जल बहाती है।
    मजदूर,किसान के कर्म से,फसल लहलहाती है। हंस जैसा बनकर,आत्मसात करो अच्छाई,
    आप सभी लोगों को,नए साल की बधाई।

    द्वेष-क्लेश को,अंतर्मन से भुल जाओ,
    परोपकार से मानव-प्रेम में,घुल जाओ।
    अस्पृश्यता,सांप्रदायिकता को बहिष्कृत करो,
    स्वच्छ-निर्मल,व्यवहार को निज जीवन में भरो।
    अभियान से,खत्म करो सामाजिक बुराई,
    आप सभी लोगों को,नए साल की बधाई।

    माता-पिता,गुरूजनों का नित करो सम्मान,
    ज्ञान के प्रकाश से,हिन्द को बनाओ महान।
    स्वतंत्रता-सेनानियों का,हर-पल करो बखान,
    जन्मभूमि की करो रक्षा,तिरंगा है हमारी शान।
    भारतीय संस्कृति में,संपूर्ण विश्व है समाई।
    आप सभी लोगों को,नए साल की बधाई।

    बीते वर्ष किसी को मिला खुशी,किसी को गम,
    आशा है इस वर्ष,मंजिल की ओर बढ़ेगा कदम।
    अथक प्रयास से दूर होगा,निराशा – विफलता,
    निरंतर मेहनत से,सभी को मिलेगा सफलता।
    कहता है’अकिल’कमियों का करो विदाई,
    आप सभी लोगों को,नए साल की बधाई।

    अकिल खान
    सदस्य,प्रचारक “कविता बहार” जिला-रायगढ़ (छ.ग.)

  • शबरी का बेर

    कविता -शबरी के बेर

    शबरी का वह बेर नही था
    सच्ची भक्ती प्रेम वही था
    ना छुआछूत ना जाति पात
    भाव भक्ति अनमोल वही था
    शबरी का संदेश यही था,
    शबरी का वह बेर नही था।

    बेरों सा अच्छाई चुन लो
    मीठी मीठी सपने बुन लो
    राह देखती शबरी सा तुम
    आहट अपने मन में सुन लो।
    प्रभु मानव का नेह यही था
    जूठी बेर का भेद यही था।

    दिन हर दिन वह सपने बुनती
    सदा सजाए रखती धरती
    दर्शन के आशा में प्रभु की
    पग-पग हर पल देखा करती
    भक्ति भाव का गेह यही था
    शबरी का संदेश यही था,

    राम हेतु पथ नजर लगाए
    मन में प्रभु की बिम्ब बनाए
    कर न्योछावर जीवन अपना
    वह जीवन का मूल्य बताए
    जीवन मूल्य विशेष यही था
    शबरी का संदेश यही था,

    शबरी का ही अर्थ धैर्य है
    सुंदर जीवन का सौंदर्य है
    कवि शबरी के अंतर्मन में
    पाये प्रभु का अमर शौर्य है
    कवि का भी उपदेश यही था
    शबरी का संदेश यही था,

    रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी

  • नई भोर हुई – सुशी सक्सेना

    . नई भोर हुई – सुशी सक्सेना

    नई भोर हुई, नई किरन जगी।
    भूमि ईश्वर की, नई सृजन लगी।

    नई धूप खिली, नई आस पली,
    ओढ़ के सुनहरी चुनरी प्रकृति हंसी,
    नया नया सा आकाश है, नये नज़ारे,
    नववर्ष में कह दो साहिब, हम तुम्हारे
    सुनकर जिसे, मन में तपन लगी।

    नववर्ष में है, बस यही मनोकामना,
    दंश झेले जो हमने पहले, पुनः आएं ना,
    नई खुशियों का, मिलकर करें स्वागत,
    नये अवसरों से होकर, हम अवगत,
    जमीं पर ही उड़ने की लगन लगी।

    एक नया वादा, खुद से कर लें आज,
    उत्साह से करें नये जीवन का आगाज़,
    नई प्रेरणा हों, नई नई हों मंजिलें,
    सच्चाई के साथ हम नई राहों पर चलें,
    कर्मपथ पर चलने में दुनिया मगन लगी।

    सुशी सक्सेना