बीर/आल्ह छंद [सम मात्रिक] विधान – 31 मात्रा, 16,15 पर यति, चरणान्त में वाचिक भार 21 या गाल l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरणों पर तुकांत l
उदाहरण : विनयशीलता बहुत दिखाते, लेकिन मन में भरा घमण्ड, तनिक चोट जो लगे अहम् को, पल में हो जाते उद्दण्ड। गुरुवर कहकर टाँग खींचते , देखे कितने ही वाचाल, इसीलिये अब नया मंत्र यह, नेकी कर सीवर में डाल।
मुक्तामणि छंद [सम मात्रिक] विधान – 25 मात्रा, 13,12 पर यति, यति से पहले वाचिक भार 12 या लगा, चरणान्त में वाचिक भार 22 या गागा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
विशेष – दोहा के क्रमागत दो चरणों के अंत में एक लघु बढ़ा देने से मुक्तामणि का एक चरण बनता है l
उदाहरण : विनयशील संवाद में, भीतर बड़ा घमण्डी, आज आदमी हो गया, बहुत बड़ा पाखण्डी l मेरा क्या सब आपका, बोले जैसे त्यागी, जले ईर्ष्या द्वेष में, बने बड़ा बैरागी l