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  • बीर/आल्ह छंद [सम मात्रिक] कैसे लिखें

    बीर/आल्ह छंद [सम मात्रिक] विधान – 31 मात्रा, 16,15 पर यति, चरणान्त में वाचिक भार 21 या गाल l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरणों पर तुकांत l

    छंद
    छंद

    उदाहरण :
    विनयशीलता बहुत दिखाते, लेकिन मन में भरा घमण्ड,
    तनिक चोट जो लगे अहम् को, पल में हो जाते उद्दण्ड।
    गुरुवर कहकर टाँग खींचते , देखे कितने ही वाचाल,
    इसीलिये अब नया मंत्र यह, नेकी कर सीवर में डाल।

    – ओम नीरव

  • केले पर कविता

    केले पर कविता

    केले पर कविता

    सबसे प्यारा सबसे न्यारा
    मेरा नाम है बनाना।

    यूं तो हू मैं पीले रंग का
    सबका दिल हूं चुराता ।

    आम, अनार, सेब, संतरे
    सबके स्वाद निराले।

    मैं जीता हूं बिना बीज के
    ऐसा हूं मैं अनोखा ।

    कदली, केला, रंभा, भानूफल
    ऊंचा लंबा मेरा कद।

    पूजा पाठ में करे इस्तेमाल
    भोग भी लगे मेरे नाम ।

    सब्जी हो या प्रसाद हो
    केला सबसे आगे हो।

    ऐसा गुण किस फल में हो
    जो केले के पास हो।

    *अमिषी उपाध्याय*

  • कभी न तोड़ो कच्चे फल

    कभी न तोड़ो कच्चे फल

    कभी न तोड़ो कच्चे फल

    बात पते की सुन लो मेरी,
    फल खाना है बहुत जरूरी।1।

    सुन्दर ,स्वस्थ,निरोग रहें हम,
    सारे सुख का भोग करें हम।2।

    आम,सन्तरा,काजू खाओ,
    बाबू,भोले,राजू आओ।3।

    प्रोटीन,विटामिन सब पाये,
    अनन्नास,अंगूर जो खाये ।4।

    कुछ मौसम कुछ बारहमासी,
    रखे,कटे मत खाओ बासी।5।

    जामुन,सेब,पपीता खाओ,
    पास डॉक्टर के मत जाओ।6।

    खरबूजा,तरबूज,अनार ,
    खा अमरूद न हो बीमार।7।

    बच्चों सुन लो बात विमल,
    कभी न तोड़ो कच्चे फल।8।



    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
    रायबरेली (उप्र) 229010

  • मुक्तामणि छंद [सम मात्रिक] कैसे लिखें

    मुक्तामणि छंद [सम मात्रिक] विधान – 25 मात्रा, 13,12 पर यति, यति से पहले वाचिक भार 12 या लगा, चरणान्त में वाचिक भार 22 या गागा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l

    छंद


    विशेष – दोहा के क्रमागत दो चरणों के अंत में एक लघु बढ़ा देने से मुक्तामणि का एक चरण बनता है l

    उदाहरण :
    विनयशील संवाद में, भीतर बड़ा घमण्डी,
    आज आदमी हो गया, बहुत बड़ा पाखण्डी l
    मेरा क्या सब आपका, बोले जैसे त्यागी,
    जले ईर्ष्या द्वेष में, बने बड़ा बैरागी l

    – ओम नीरव

  • आम फल पर बाल कवितायेँ

    यहाँ पर आम फल पर 3 कवितायेँ प्रस्तुत हैं जो कि बाल कवितायेँ हैं

    आम फल पर बाल कवितायेँ

    नाम मेरा आम

    नाम मेरा आम है,
    हूं फिर भी खास।
    खाते मुझको जो,
    पा जाते है रास।

    रूप मेरे है अनेक,
    सबके मन भाता।
    देख देख मुझे सब,
    परमानंद को पाता।

    घर घर मेरी शाख,
    बनता हूं आचार।
    लू में सिरका बनूँ,
    दे शीतल बयार।

    खट्टे मीठे स्वाद है,
    मुह में पानी लाते।
    खाते बच्चे चाव से,
    इत उत है इठलाते।

    तोषण कुमार चुरेन्द्र”दिनकर “
    धनगांव डौंडीलोहारा
    बालोद छत्तीसगढ़

    आम-फलों का राजा

    मैं फलों का राजा हूंँ,
    कहते हैं मुझको आम।
    मुँह में पानी आ जाता,
    लेते ही मेरा नाम।।

    बनता हूंँ चटनी अचार,
    जब मैं कच्चा रहता।
    वाह बड़ा मजा आया,
    जो खाता वह कहता।

    गर्मी में शर्बत मेरा,
    तन को ठंडक पहुँचाता।
    लू लगने से भी मैं ही,
    सब लोगों को बचाता।।

    पीले पीले रसीले आम,
    सबका मन ललचाते।
    चूस चूस कर बड़े मजे से,
    बच्चे बूढ़े सब खाते।।

    मैं खास से भी खास हूं,
    कहते हैंं पर मुझको आम।
    राजा प्रजा सब खायें,
    देकर मुँहमाँगा दाम।।

    प्यारेलाल साहू मरौद

    मैं आम हूँ

    मैं हूँ आम कभी खट्टा
    तो कभी में शहद सा
    मीठा मीठा मेंरास्वाद
    दिखता मैं हरा पिला,

    मेरे नाम अनेक है
    दशहरी,लगड़ा,बादामी
    आदि बच्चे, बुढे सभी
    को भाता हूँ मैं आम,

    मुरब्बा,पन्ना,आम रस,
    अचार घर घर मे बनता
    है आम मैं कच्चा पक्का
    आता हूँ काम हमेशा,

    गर्मी में राहत देता
    हर दिल अज़ीज
    देता सबको सुकून
    मैं हूँ प्यारा सा आम।

    मीता लुनिवाल
    जयपुर, राजस्थान