शब्दों की महत्ता पर कविता

kavi ki kalam

शब्दों की महत्ता पर कविता


चुभते हैं कुछ शब्द,
चूमते हैं कुछ शब्द /
शब्दकोश से निकलकर,
भावनाओं की गली से-
गुजरते हैं,
और पाते हैं अर्थ,
कहीं अनमोल,
कहीं व्यर्थ ।
संगति का प्रभाव
तो पड़ता ही है।
कितने जीवंत रहे होंगे !
शब्द जब भाव ने-
दिया होगा जन्म ।
पर प्रदूषित परिवेश की-
परवरिश ने कर दिया –
जर्जर,दुर्बल और तिरस्कृत।
गलत हाथों में है मशालें,
रोशनी के लिए जलाते हैं-
घर,बस्ती, नगर,मानवता-
आवाज आती है “स्वाहा!!”
और होम दी जाती है-
संवेदना, संस्कृति –
होने लगता है-
वध,साधु शब्दों का,
सभ्य शब्दों के द्वारा,
स्वस्ति वाचन का स्वर,
निस्पंद कर जाता है ,
लेखनी के हृदय को।


——- R.R.Sahu

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