दिख रहा तेरा अंजरपंजर , बना रहा है तू अट्टालिकायें, रहता है झुग्गी झोपड़ियों में , दूसरो के लिये बना रहा है रेशमी महल | तुझे तो बस दिन भर की पगार चाहिए , तिबासी भोजन खाकर, अपने आप को टुटपूँजीया बना रहा है |
नित बोलता है तू गजर-बजर बदल रहा है तू सरकारे तुझे चाहिए दो वक्त की रोटियां सजा रहा है मखमली रेशमी सेज | तुझे तो दिहाड़ी पर जाना है , मजदूर होकर , खुल्लमखुल्ला डंका बजा रहा है |
लोग कहते है तुझे डपोरशंख, तू चला रहा मशीनरी उद्योग , तुझे तो रोज विश्राम चाहिए , बना रहा है दूसरो के लिये रेशमी सड़क | तुझे तो पगडंडीयो पर चलना है , पददलित होकर, धर्म का मटियामेट कर रहा है |
करता है तू लल्लो-चप्पो , अशिक्षित होकर बांध बना रहा है , पीना तुझे है गंदला पानी, दूसरो के लिये बना रहा है रेशमी जलयान | तुझे तो अपने परिवार का पेट भरना है , लतखोर शराब पीकर समाज की नजरो में बिलबिला रहा है |