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  • स्वर्ण की सीढ़ी चढी है – बाबू लाल शर्मा

    स्वर्ण की सीढ़ी चढी है – बाबू लाल शर्मा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    चाँदनी उतरी सुनहली
    देख वसुधा जगमगाई।
    ताकते सपने सितारे
    अप्सरा मन में लजाई।।

    शंख फूँका यौवनों में
    मीत ढूँढे कोकिलाएँ
    सागरों में डूबने हित
    सरित बहती गीत गाएँ

    पोखरों में ज्वार आया
    झील बापी कसमसाई।
    चाँदनी……………….।।

    हार कवि ने मान ली है
    लेखनी थक दूर छिटकी
    भूल ता अम्बर धड़कना
    आँधियों की श्वाँस अटकी

    आँख लड़ती पुतलियों से
    देख ती बिन डबडबाई।
    चांदनी………… ……।।

    घन घटाएँ ओढ़नी नव
    तारिकाओं से जड़ी है
    हिम पहाड़ी वैभवी हो
    स्वर्ण की सीढी चढी है

    शीश वेणी वन लताएँ
    चातकी भी खिलखिलाई।
    चाँदनी…………………।।

    स्वप्न देखें जागत़े तरु
    गीत नींदे सुन रही है
    भृंग की गुंजार वन में
    काम की सरिता बही है

    *विज्ञ* पर्वत झूमते मृग
    सृष्टि सारी चहचहाई।
    चाँदनी…………….।।


    ✍©
    बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
    बौहरा-भवन
    सिकंदरा ३०३३२६
    दौसा, राजस्थान,

  • गुलमोहर है गुनगुुनाता – बाबू लाल शर्मा

    गुलमोहर है गुनगुुनाता – बाबू लाल शर्मा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    गुलमोहर है गुनगुुनाता,
    अमलतासी सी गज़ल।

    रीती रीती सी घटाएँ,
    पवन की अठखेलियाँ।
    झूमें डोलें पेड़ सारे,
    बालियाँ अलबेलियाँ।
    गीत गाते स्वेद नहाये,
    काटते हम भी फसल।
    गुलमोहर है गुनगुनाता,
    अमलतासी सी गज़ल।

    बीज अरमानों का बोया,
    खाद डाली प्रीति की।
    फसलें सींची स्वेद श्रम से,
    कर गुड़ाई रीति की।
    भान रहे हमको मिलेंगी,
    लागतें भी क्या असल।
    गुलमोहर है गुनगुनाता,
    अमलतासी सी गज़ल।

    भूलकर रंग तितलियों के,
    मधुप की गुंजार भी।
    चटखती कलियाँ मटकती,
    भूल तन गुलजार भी।
    सोचते यही रह गये हम,
    भाग्य के खिलते कमल।
    गुलमोहर है गुनगुनाता,
    अमलतासी सी गज़ल।

    घिरती आई फिर घटाएँ,
    बरसती अनचाह में।
    डूबे हम तैरी फसल सब,
    दामिनी थी आह में।
    बहते मन सपने सुनहले,
    बस बचा पाया गरल।
    गुलमोहर है गुनगुनाता,
    अमलतासी सी गज़ल।


    ✍©
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा
    सिकंदरा,303326
    दौसा,राजस्थान,9782924479

  • इक शिखण्डी चाहिए – बाबू लाल शर्मा

    इक शिखण्डी चाहिए – बाबू लाल शर्मा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    पार्थ जैसा हो कठिन,
    व्रत अखण्डी चाहिए।
    *आज जीने के लिए,*
    *इक शिखण्डी चाहिए।।*

    देश अपना हो विजित,
    धारणा ऐसी रखें।
    शत्रु नानी याद कर,
    स्वाद फिर ऐसा चखे।

    सैन्य हो अक्षुण्य बस,
    व्यूह् त्रिखण्डी चाहिए।।
    आज जीने के…….

    घर के भेदी को अब,
    निश्चित सबक सिखाना।
    आतंकी अपराधी,
    को आँखे दिखलाना।

    सुता बने लक्ष्मी सम,
    भाव चण्डी चाहिए।।
    आज जीने के…….।

    सैन्य सीमा मीत अब,
    हो सुरक्षित शान भी।
    अकलंकित न्याय रखें,
    सत्ता व ईमान भी।

    सिर कटा ध्वज को रखे,
    तन घमण्डी चाहिए।।
    आज जीने………..।

    ✍©
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा
    सिकंदरा, दौसा, राजस्थान

  • प्रीत शेष है मीत धरा पर

    नवगीत- प्रीत शेष है मीत धरा पर

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    प्रीत शेष है मीत धरा पर
    रीत गीत शृंगार नवल।
    बहे पुनीता यमुना गंगा
    पावन नर्मद नद निर्मल।।

    रोक सके कब बंधन जल को
    कूल किनारे टूट बहे
    आँखों से जब झरने चलते
    सागर का इतिहास कहे

    पके उम्र के संग नेह तब
    नित्य खिले सर मनो कमल।
    प्रीत……………………..।।

    सरिताएँ सागर से मिलती
    नेह नीर की ले गगरी
    पर्वत पर्वत बाट जोहता
    नेह सजा बैठी मँगरी

    धरा करे घुर्णन परिकम्मा
    दिनकर प्रीत पले अविरल।
    प्रीत……………………..।।

    चंदा पावन प्रीत निभाता
    धरा बंधु नर का मामा
    पहन चूनरी ओढ़ चंद्रिका
    नेह बाँधती नित श्यामा

    प्रेम पिरोये मन में आशा
    भाव चंद्रिका सा उज्ज्वल।
    प्रीत…………………….।।

    संग तुम्हारे मैं गाऊँ अब,
    तुम भी छंद लिखो मन से
    बनूँ राधिका मुरली धर तुम
    लिपट रहूँ मानस तन से

    रख मन चंगा घर में गंगा
    हुए केश शुभ शुभ्र धवल।
    प्रीत……………………।।

    ✍ ©
    बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
    सिकंदरा,दौसा, राजस्थान

  • किसान की पहचान

    किसान की पहचान

    किसान की पहचान

    किसान की पहचान

    अन्न-आहार का किसान करे खुब पैदावार,
    किसान की खेती से प्रकृति में आए बहार।
    हल-यंत्र से किसान करे खेतों में काम,
    किसान की खेत है पवित्र चारों-धाम।
    कृषि की उपज से है मुख पर मुस्कान,
    कृषि है कर्मभूमि, किसान की पहचान।

    प्रकृति के प्रकोप से जब पड़े भीषण-अकाल,
    कठिन परिश्रम से जीवन को बनाए खुशहाल।
    किसान है निर्भीक रहे सदैव दयावान,
    कृषि है कर्मभूमि,किसान की पहचान।

    सर्प बिच्छू कीट पतंग किसान के हैं मित्र,
    वर्षा – ऋतु में सुंदर धान रोपा का है चित्र।
    बदन में है पसीना लब पर है मीठ-गान,
    कृषि है कर्मभूमि,किसान की पहचान।

    धरा को चीरकर किसान उगाए अन्न,
    सभी को भोजन दे किसान हैं धन्य।
    अतिवर्षा और तपती धूप की तपन,
    किसान है अडिग और मजबूत मन।
    कृषक बीना सुनसान है खेत खलिहान,
    कृषि है कर्मभूमि,किसान की पहचान।

    सच्चा पुत्र है भारत माता का किसान,
    देश के विकास में दे अमूल्य योगदान।
    लाभ-हानि को सहकर करें कृषि-काम,
    करें खेत की रखवाली प्रातः हो या शाम।
    मैं लेखनी से करूं किसान का बखान,
    कृषि है कर्मभूमि,किसान की पहचान।

    अकिल खान रायगढ़

    जिला-रायगढ़ (छ.ग.) पिन – 496440.