चींटी और तितली
कीचड़ में सनी चींटी,
दाना खाती बैठी चींटी।
इतने में आयी तितली रानी,
बोली कितना गंदा पीती हो पानी,
मुझको देखो कितनी प्यारी!
रंग-बिरंगी और दुलारी,
फूलों का रस पीती हूँ,
जीवन में रंग भर देती हूँ ।
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चींटी बोली बहन दुलारी,
घृणा करो न इतनी सारी,
न बनो तुम बडबोली
बोलो मीठी मीठी बोली,
आया इक दिन बडा तूफान,
तितली पड़ी जमीन पर बेहोश समान,
चींटी ने देखा उसे बेहाल,
बाहर निकाला पूछा सवाल,
किया घमंड था तुमने रानी,
तुमने की कैसी ये नादानी?
देखो न किसी का रूप रंग और जवानी,
जीवन में जो साथ निभाये वही है सच्चा ज्ञानी।
औरों की मदद का रखो ध्यान,
पा लोगे तुम सबका सम्मान।
माला पहल ‘मुंबई’