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  • मैं गुलाब हूँ

    मैं गुलाब हूँ

    गुलाब

    मैं गुलाब हूं
    खूबसूरती में बेमिसाल हूं
    थोड़ा नाजुक और कमजोर हूं
    छूते ही बिखर जाती हूं
    फैल जाती है मेरी पंखुड़ियां
    ऐसा लगता है पलाश हूं
    उन पंखुड़ियों को मैं समेटती हूं
    कांटों की चुभन की परवाह
    नहीं करती हूं
    बढ़ती जाती हूं
    जीवन में आगे
    टकराने को नदियों की धारा से
    चट्टानों से या तूफानों से
    रास्ता खोज जीवन का
    एक नया सवेरा पाने को
    अपने अस्तित्व को बचाने को
    यह सबब भी तो मैंने
    गुलाब से ही सीखा है
    सुंदरता और सुगंध से लबरेज
    गुलाब तोड़ने वालों के
    हाथ में कांटा भी चुभाती है ।

    कवयित्री- चारूमित्रा
    नंबर -9471243970
    एम.आई.जी- 82, एच.एच.कॉलोनी, रांची-834002

  • धरा की आह पर कविता

    धरा की आह पर कविता

    धरा की आह पर कविता

    धरा की आह पर कविता

    न कभी सुनने की थी चाह,
    फिर भी मैंने सुनी है आह।
    कभी कर्कश आवाजें करती थी टहनियाँ,
    कह रही है अनकही कहानियाँ,
    कभी हवाओं के झोंके से मचलती थी मेरी सहेलियाँ,
    अब खड़ी है फैलाकर झोलियाँ,
    अब न कटे हमारे साथी और न सखियाँ।

    न कभी सुनने की थी चाह,
    फिर भी मैंने सुनी है आह।
    ऊंचे-ऊंचे पर्वतों की सूनी चोटियाँ,
    सूखे दरख्त सूखी लताएँ व सूखी झाडियाँ,
    तेज़ी से पिघलती बर्फ की सिल्लियाँ।

    न कभी सुनने की चाह,
    फिर भी मैंने सुनी है आह।
    मैं हूँ धरा, सुनो तो मेरी जरा,

    कितनी अट्टालिकाओं की बलि चढ़ती मैं,
    सीमेंट व कॉन्क्रीट के बोझ सहती मैं।

    हे मानव! मेरी चीख पुकार को ठुकरा न तू,
    वरना कराह भी न पाएगा तू।
    अब न कर हमारे अंग भंग,
    वरना मिट जाएगा तू भी हमारे संग संग।
    आह को महसूस कर!
    आह को महसूस कर!
    अपने इन डगमगाते कदमों को थाम ले,
    अपना भविष्य संवार ले,
    सबका भविष्य संवार ले।

    माला पहल, मुंबई

  • मैं गुलाब हूं – रामबृक्ष

    मैं गुलाब हूं – रामबृक्ष

    गुलाब

    मैं गुलाब हूं फूलों में,
    रहता कृष्ण के झूलों में,
    या वीर जवानों के पथ पर
    या सुंदर बालों के जूड़ो में|

    मेरा जन्म हुआ है कांटों में,
    जीवन के विघ्न सा बाटो में,
    वो चुभ जाए जो हिलूं जरा,
    हूं जिह्वा जैसा दांतों में |

    पंखुड़ियां रंग भरे कोमल,
    ले भरी जवानी गातो में,
    कोई विघ्न भला क्या कर सकता?
    जब खिलूं हरे भरे पातों में।

    मैं गुलाब ,कई रंगों में,
    मन मीत मनोहर अंगों में,
    मैं बिखेर खुशबू अपना,
    जीवन जीता सानन्दो में।

    फूलों में नाम मेरा पहला,
    मैं प्रेम निशानी अलबेला,
    वो प्यार में प्यारा बन जाता
    कांटों में जीवन जीने वाला।

    मेरा रूप गुलाबी गालों पर,
    निखरे जस झूमती डालो पर,
    तारीफ़ सदा होता मेरा,
    मद मस्त जवानी हालो पर।

    है प्रेम रंग से बड़ा कौन?
    खिलते चेहरे को पढ़ा कौन?
    मैं गुलाब तन मन का हूं,
    ख़ुश रहो सदा न रहो मौन|

    रचनाकार-रामबृक्ष, अम्बेडकरनगर
    ग्राम-बलुआबहादुरपुर पोस्ट-रुकुनुद्दीनपुर जनपद-अम्बेडकरनगर (उत्तर प्रदेश) पिनकोड- 224186

  • गुलाब पर कविता – रामबृक्ष

    गुलाब पर कविता – रामबृक्ष

    गुलाब
    gulab par kavita

    कांटों में पला बढ़ा जीवन
    संग पत्ते बीच हरे-भरे,
    कली से खिल कर फूल बना,
    एक चुभ जाता
    जो छूता मुझे,
    एक रंग भरा
    संग मेरे रंगों के,
    वे सरल कठोर भले दोनों,
    आज खुशबू तो मेरे बिखरे,|
    मैं हूं गुलाब,
    वीरों के पथ पर,
    किसानों के पग पर,
    वर-वधू के रथ पर
    शहीदों के मज़ार पर
    महा पुरुषों के गले में पड़ा,
    प्रेमी के मन में खिला,
    यह स्वभाव भले मेरा
    एहसान भला कैसे भूलूं,
    उनसे ही रूप मेरे निखरे ||
    मैं क्षुधा शांत कर न सकूं,
    मैं अलग-अलग को एक करु,
    संस्कृति-सभ्यता का प्रतीक,
    जगह जगह बदला स्वरूप,
    जैसे मेरे रंगों के रूप,
    पहचान बना उन कांटों से,
    कोई कुछ कहे,
    समझे,न समझे,
    अपनापन अपनों से
    तोड़ो न कभी रिस्ते गहरे ||

    रचनाकार-रामबृक्ष अम्बेडकरनगर
    ग्राम-बलुआ बहादुरपुर पोस्ट-रुकुनुद्दीनपुर जनपद-अम्बेडकरनगर (उत्तर प्रदेश)-224186

  • सुगन्धित फूल हूं गुलाब का – कमल कुमार

    सुगन्धित फूल हूं गुलाब का – कमल कुमार

    गुलाब
    gulab par kavita

    रंग बिरंगा सुगन्धित फूल हूं गुलाब का ,
    तिरस्कार कर मुझे सड़कों पर मत फैंकिये |
    दीजिये अपनी प्रेमिका प्रेमी को ,
    जरा सा प्यार मोहब्बत का इज़हार तो कीजिये |
    सजा के उसकी घनी जुल्फों में ,
    मौसमे बहार का इंतजार तो कीजिये |
    सुबह की नमस्कार के साथ ,
    यार दोस्तों के दिल को खुश तो कीजिये |
    अजी दीजिये गुलाब किसी दुखी बीमार को ,
    फिर चेहरे पर मुस्कराहट तो देखिये |
    काले पीले लाल गुलाबी रंग के पंख ,
    काले कोट में सजा कर तो देखिये |
    भगवान के दरबार को एक बार सजाये ,
    सुगन्ध से एक बार महका के तो देखिये ||
    रंग बिरंगा ..

    कमल कुमार “आजाद”
    बिलासपुर छत्तीसगढ़