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  • पुस्तकों का आश्रय

    पुस्तकों का आश्रय पाकर

    पुस्तकों का आश्रय

    पुस्तकों का आश्रय पाकर

    तुम जो चाहे बन सकते हो |

    चीर कर अज्ञान के तम को

    ज्ञान मार्ग पर बढ़ सकते हो |

    संस्कारों की पूँजी पाकर

    तुम जो चाहे बन सकते हो |

    चीरकर आधुनिकता की बेड़ियाँ

    आदर्श राह पर बढ़ सकते हो |

    आदर्शों की पूँजी लेकर

    तुम जो चाहे बन सकते हो |

    चीर कुविचारों की बेड़ियाँ

    सच की राह पर बढ़ सकते हो |

    आध्यात्म का आश्रय लेकर

    तुम जो चाहे कर सकते हो |

    चीर भौतिक सागर की लहरों को

    मोक्ष मार्ग पर बढ़ सकते हो |

    पुस्तकों का आश्रय पाकर

    तुम जो चाहे बन सकते हो |

    चीर कर अज्ञान के तम को

    ज्ञान मार्ग पर बढ़ सकते हो ||

    रचयिता – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम “

  • तारों सितारों में तुझे ढूंढता हूँ

    तारों सितारों में तुझे ढूंढता हूँ

    तारों सितारों में तुझे ढूंढता हूँ

    तारों , सितारों में तुझे ढूंढता हूँ

    पवन की बयारों में तुझे ढूंढता हूँ |

    सूना है तू बसता है, हर एक के दिल में

    गली, मोहल्ले, चौराहों पर तुझे ढूंढता हूँ |

    सुना है संवेदनाओं के समंदर में है , तेरा ठिकाना

    चीरहरण की कथाओं में , तुझे ढूंढता हूँ |

    कहीं दिल के कोने में, है तेरी कुटिया |

    मंदिर, मस्ज़िद, चर्च में तुझे ढूंढता हूँ |

    नन्ही परी कूड़े के ढेर का हिस्सा हो गयी

    माँ के मातृत्व में तुझे ढूंढता हूँ |

    सुना है सलिला के कल – कल में बसता है तू

    प्रकृति के कण – कण में तुझे ढूंढता हूँ |

    लाखों घर हुए सूने, हज़ारों गोद हो गयीं सूनी

    कोरोना की इस भीषण त्रासदी में तुझे ढूंढता हूँ |

    उसने पुकारा तुझे बार – बार , फिर भी नोच ली गयीं उसकी आंतें

    उस निर्भय की चीखों, उन दरिंदों की भयावह आँखों में तुझे ढूंढता हूँ |

    लहरों में समा गयी थी , वो मुस्कराते – मुस्कराते

    सामाजिकता में, रिश्तों की भयावहता में तुझे ढूंढता हूँ |

    सह नहीं पाया वो आघात, अपनी बेटी के दुःख का

    दहेज़ के लालची चरित्रों की निकृष्ट सोच में तुझे ढूंढता हूँ |

    तारों , सितारों में तुझे ढूंढता हूँ

    पवन की बयारों में तुझे ढूंढता हूँ |

    सूना है तू बसता है, हर एक के दिल में

    गली, मोहल्ले, चौराहों पर तुझे ढूंढता हूँ ||

    रचयिता – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम “

  • तू मेरा मालिक

    तू मेरा मालिक मालिक है मेरा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    तू मेरा मालिक , मालिक है मेरा

    तुझसे ही रोशन , मेरी जिन्दगी है |

    हुआ मैं रोशन , करम से तेरे

    तुझसे ही रोशन , मेरी जिन्दगी है |

    अपना समझना , सदा ही मुझको

    पीर मेरी , फ़ना हो रही है |

    तेरे दीदार की, आरज़ू है मुझको

    हैं आसपास महसूस करता हूँ तुझको |

    तेरे करम का , साया है मुझ पर

    तुझसे ही रोशन , मेरी जिन्दगी है |

    गीत बनकर रोशन हो जाऊं मैं

    ग़ज़ल बनकर निखर जाऊं मैं

    ज़ज्बा हो इंसानियत का मुझमे

    पीर सबके दिलों की मिटाऊँ मैं

    तेरे करम से रोशन हुई कलम मेरी

    तेरी इबादत को अपना मकसद बना लूं मैं

    तेरा शागिर्द हूँ , नाज़ है मुझको तुझ पर

    तेरे दर का चराग कर लूं खुद को

    मेरे मुकद्दर पर , हो तेरी इनायत और करम

    तेरी इबादत में खुद को फ़ना कर लूं मैं |

    तू मेरा मालिक , मालिक है मेरा

    तुझसे ही रोशन , मेरी जिन्दगी है |

    हुआ मैं रोशन , करम से तेरे

    तुझसे ही रोशन , मेरी जिन्दगी है |

    रचयिता – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम”

  • सावन में भक्ति

    प्रस्तुत कविता सावन में भक्ति भगवान शिव पर आधारित है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है।

    सावन में भक्ति

    सावन सुहाना आया,
    हरीतिमा जग छाया,
    भोले की कृपा है पायी,
    जयति शिव बोल।

    झूम रही डाली डाली,
    मस्त होके मतवाली,
    सूरज भी काफी खुश,
    नेत्र अपना खोल।

    तन तन घंटा बोले,
    मन शिव नाम डोले,
    बेल पत्र चढ़ाकर,
    त्रिदेव जय बोल।

    पहला सोमवार है,
    रिमझिम फुहार है,
    दान दया कर कुछ,
    कर भक्ति अनमोल।

    मुख पर बहार है,
    नागों का गले हार है,
    जग को जगा रहे हैं,
    डमरू और ढोल।

    सावन की बेला आयी,
    हरि प्रीत मन छायी,
    सुहानी घड़ी में सब,
    भक्ति का रस घोल।

    ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
    अशोक शर्मा, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

  • महाशिव भोले भंडारी पर गीत

    महाशिव भोले भंडारी पर गीत

    भोर वंदन-महाशिव तांटक छन्दगीत
    *******************************
    *महाकाल भोले भंडारी, बहुनामी त्रिपुरारी है।…*
    *निराकार कण-कण के स्वामी, ज्योति लिंग अवतारी है।…*

    सूर्या समाधि धारण करते, अष्टंगी के लाला है।
    चक्र कमण्डल गले नाग अरु, अंग वसन मृगछाला है।।
    पेशानी चंदन त्रिपुंड है, शेषनाग गर माला है।
    अखिल लोक रक्षार्थ निहित है, नीलकंठ में हाला है।।

    *भाव समागम दृश्य विहंगम, अर्ध अंग में नारी है।…*
    *निराकार कण-कण के स्वामी, ज्योति लिंग अवतारी है।…*

    चंद्र भाल डमरू त्रिशूल ले, जीव चराचर काशी में।
    धर्म ध्यान विज्ञात समाहित, तीन लोक अविनाशी में।।
    गोमुख प्रभु का नित्य बसेरा, तारण करती काया है।
    केश जटाएँ गंगा धारे, शंभुनाथ की माया है।।

    *भव सागर से पार लगाते, शाश्वत तारणहारी है।…*
    *निराकार कण-कण के स्वामी, ज्योति लिंग अवतारी है।…*

    शक्ति स्वरूपा मातु भवानी, शिवा मिलन की बेला है।
    आदि शक्ति सह शिवशंकर के, भक्त जनों की रेला है।।
    दूध शहद जल बेल धतूरा, अक्षत पुष्प चढ़ाते है।
    शंखनाद जयघोष सुनाते, गीत मांगलिक गाते हैं।

    *सोलह सावन व्रत का पालन, महारात्रि शुभकारी है।…*
    *निराकार कण-कण के स्वामी, ज्योति लिंग अवतारी है।…*

    ==डॉ ओमकार साहू *मृदुल*26/07/21==