मत करो प्रकृति से खिलवाड़
मत काटो तुम ये पहाड़,
मत बनाओ धरती को बीहाड़।
मत करो प्रकृति से खिलवाड़,
मत करो नियति से बिगाड़।।1।।
जब अपने पर ये आएगी,
त्राहि-त्राहि मच जाएगी।
कुछ सूझ समझ न आएगी,
ऐसी विपदाएं आएंगी ।।2।।
भूस्खलन और बाढ़ का कहर,
भटकोगे तुम शहर-शहर।
उठे रोम-रोम भय से सिहर,
तुम जागोगे दिन-रात पहर।।3।।
प्रकृति में बांटो तुम प्यार,
और लगाओ पेड़ हजार।
समझो इनको एक परिवार,
आगे आएं हर नर और नार।।4।।
पर्यावरण असंतुलित न हो पाए,
हर लब यही गीत गाए।
धरती का स्वर्ग यही है,
पर्यावरण संतुलित यदि है।।5।।
निर्मल नदिया कलकल बहता पानी,
कहता है यही मीठी जुबानी।
धरती का स्वर्ग यही है,
पर्यावरण संतुलित यदि है।।6।।
।।।। दीप्ता नीमा ।।।।