लघुकथा कैसे लिखें?
लघुकथा छोटी कहानी का अति संक्षिप्त रूप है । लघुकथा का लक्ष्य जीवन के किसी मार्मिक सत्य का प्रकाशन होता है जो बहुधा इस ढंग से अभिव्यक्त होता है जैसे बिजली कौंधती है। इसमें अत्यल्प साधनों द्वारा ही जीवन के चरम सत्य को उजागर करने की चेष्टा की जाती है। लघुकथाओं में बहुत कुछ राह सुझाने का भाव होता है। लघुकथाएँ निर्जन सुनसान से होकर गुजरने वाली पगडंडी है ।लघुकथाओं में अति कल्पना का खुलकर प्रयोग होता है।
मुख्य तौर पर लघुकथा वर्णनात्मक, वार्तालाप शैली अथवा मिश्रित शैली ( जिसमें कथन के अलावा पात्रों के माध्यम से संवाद/ वार्तालाप भी होता है) में लिखी जाती है । यदि कथानक की आवश्यकता हो तो मोनोलाॅग शैली ( स्वयं से बात ) में भी लघुकथा कही जा सकती है ।
लघुकथा-सावन की फुहार
दीपक अपने कमरे में चुपचाप, गुमसुम बीते दिनों की याद में खोया हुआ था । अतीत की बातें उसकी आँखों के सामने एक एक करके आने लगे थे । बड़ी हसरत से उसने अपना एक छोटा- सा आशियाना बनाया था । अपनी जीवनसंगिनी और अपने बच्चों के साथ वह बहुत खुश था । बच्चों को अच्छा संस्कार दिया , उच्च शिक्षा दिलायी , लेकिन आदमी की हर इच्छा पूरी हो , शायद यह संभव नहीं है । ना जाने कैसे उसका इकलौता बेटा सत्या ” पब जी ” गेम के वशीभूत होता चला गया जिसका दुष्प्रभाव सत्या के दिनचर्या पर दिखाई पड़ने लगा था ।
घर में सभी परेशान रहने लगे थे । किसी की समझाइश का कोई भी असर नहीं पड़ता देख दीपक ने सब कुछ समय पर छोड़ दिया । ना जाने कब दीपक की आँख से आँसू टपकने लगे थे । दीपक को लगा जैसे कोई उसे झकझोर रहा है । आँखें खोली तो देखा ,सत्या उसे जोर जोर से हिला रहा था , उसकी आँखें डबडबाई हुई थी । उसनेे रूँधे गले से कहा -” पापा , मुझे माफ़ कर दो । आपकी क़सम पापा , आज से मैं ” पब जी ” गेम की ओर देखूँगा भी नहीं ।”
दीपक को लगा मानो उसके परिवार में सावन की नई फुहार आ गई है ।
गजेन्द्र हरिहारनो ” दीप “
डोंगरगाँव,जिला – राजनांदगाँव(छत्तीसगढ़)
लघुकथा-मोहल्लेदारी
आज सुबह मोहल्ले के शर्मा जी घर आए…
गर्मी, महँगाई और रिश्तेदारों पर दो घंटे बातचीत की..
मैंने चाय का पूछा तो उन्होंने नींबू पानी पीने की ख्वाहिश की.. कहा – आजकल नींबू पानी कोरोना में बहुत मुफीद है।
दो घंटे के बाद जाते हुए दुआएँ दी और बोले : अब ऊपर वाले ने चाहा तो पंद्रह दिन बाद मुलाकात होगी, डाक्टरों ने दो हफ्ते के लिए क्वांरटाइन इलाज बताया है। कह रहे थे इस दौरान किसी से मिलियेगा जुलियेगा नहीं, तो मैंने सोचा आज ही सारे मोहल्ले वालों से मिल आऊँ …
आखिर मुहल्लेदारी भी कोई चीज़ होती है।
गजेन्द्र हरिहारनो ” दीप “
डोंगरगाँव,जिला – राजनांदगाँव(छत्तीसगढ़)