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  • पिता सदा आदर्श हैं (पिता पर दोहे)

    पिता सदा आदर्श हैं (पिता पर दोहे)

    पिता

    ख्याल रखें संतान का, तजकर निज अरमान।
    खुशियाँ देते हैं पिता, रखतें शिशु का ध्यान। ।१

    मुखिया बन परिवार का , करतें नेह समान ।
    पालन पोषण कर पिता , बनते हैं भगवान ।।२

    जिसकी ऊँगली थामकर , चलना सीखें आज ।
    मातु–पिता को मान दें, करें हृदय में राज।।३

    शीतल छाया दें पिता, बरगद वृक्ष समान ।
    शाखा बनकर आज हम, रखें पिता का ध्यान।।४

    पिता सदा आदर्श हैं , परिमल इनका ज्ञान ।
    धारण कर लें नेक गुण, पिता रूप भगवान ।।५

    गढ़ने नवल भविष्य को, बनते पितु आधार।
    प्रेम त्याग से सींचकर, देते हैं संस्कार।।६

    बनकर घर की नींव पितु, सहते दुःख अपार।
    देते हैं छाया हमे , रक्षित घर परिवार ।।७

    आए संकट की घड़ी, देते संबल आस।
    आगे बढ़ने की सदा, भरतें मन विश्वास।।८

    बूढ़े हाथों आज भी, करते सारे काम।
    मातु–पिता को तो कभी , मिला नहीं आराम।।९

    पढ़ लेते हैं बेटियों, की मन की दुख आप।
    बनकर हिम्मत हौसला, हरते पितु संताप।।१०

    उदधि समाहित है जहाँ, पितु का हृदय विशाल।
    वंदन करती *पर्वणी*, रख पितु पग में भाल।।११

    पद्मा साहू *पर्वणी* खैरागढ़
    जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़

  • शरणार्थियों का सम्मान

    शरणार्थियों का सम्मान

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    होकर मजबूर वो घर- द्वार छोड़ गए,
    पुराने सुरमई यादों से अपना मुँह मोड़ गए।
    दहशतगर्दों के साजिश से होकर नाकाम,
    फिरते इधर- उधर लोग यूं ही करते इनको बदनाम।
    उम्मीद भरी नैनो से जो देखा सपना,
    समय की मार से वो कभी न हुआ अपना।
    मिलता जब इनको सहयोग तो छा जाता चेहरे पर मुस्कान,
    अब हम करेंगे, शरणार्थियों का सम्मान।

    पढ़ने के उम्र में करते ये काम होकर बेसहारा,
    टूटी – फूटी झोपड़ – पट्टी सा घर है इनको प्यारा।
    अपनी जमीन गांव – गली को याद कर चुपके – चुपके रोया,
    समय की चाल में भूल गया वो क्या पाया और खोया।
    होगा वो महापुरुष जो करे इनपर सेवा – दान,
    अब हम करेंगे,शरणार्थियों का सम्मान।

    अत्याचार और जुल्मों – सितम का मार,
    पीकर गम के आंसुओं को करते खुशी का इजहार।
    कोई भी इनके दर्द को न जाना,
    करते रोजगार के लिए मजदूरी और गाना – बजाना।
    काश इनका भी होता एक अलग पहचान,
    अब हम करेंगे, शरणार्थियों का सम्मान।

    किस्मत के मार से खुद को गए भुल,
    पहनते फटे कपड़े – चप्पल और खाते हैं धुल।
    कोई इनको धिक्कारे कोई करे इनको प्यार,
    फिर भी अपने दुःखों का कभी न करें ये इजहार।
    चलाकर अभियान करेंगे रक्षा बढ़ेगा इनका शान,
    अब हम करेंगे, शरणार्थियों का सम्मान।



    —– अकिल खान रायगढ़ जिला- रायगढ़ (छ. ग.) पिन – 496440.

  • गंगा दशहरा (20 जून) पर गीत

    गंगा दशहरा (20 जून) पर गीत

    राम
    राम

    गोद में तुम सदा ही खिलाती रहो, प्यार से आज तुम ही दुलारो हमें
    गंगा मइया यहाँ अब तारो हमें, कष्ट सारे मिटाकर उबारो हमें।

    मौत के बाद भी तो रहे वास्ता, तुम दिखाओ हमें स्वर्ग का रास्ता
    अस्थियाँ, भस्म सब कुछ समर्पित करें, फिर नई जिंदगी से भला क्यों डरें
    क्या पता कौन सा जन्म हमको मिले, कौन सी आत्मा फूल बनकर खिले
    आस्थाएँ नहीं मिट सकेंगी कभी, अंत में साथ पाते तुम्हारा सभी।

    पत्र मुख में पड़े हों तुलसी के जब, और जल तुम पिलाकर पुकारो हमें
    गंगा मइया यहाँ अब तारो हमें, कष्ट सारे मिटाकर उबारों हमें।

    घूमते हैं यहाँ खूब ठग आजकल, नाम से वे तुम्हारे करते हैं छल
    आज दंडित करो तुम यहाँ दुष्ट जो, फिर कभी भी न सज्जन असंतुष्ट हो
    व्यर्थ स्नान हो जब हुआ मन मलिन, पापियों के बढ़े पाप हैं रात- दिन
    कौन उद्धार उनका करेगा कहाँ, जो सताते रहे निर्बलों को यहाँ।

    तुम हमें दुर्दिनों से बचाती रहो, एक बच्चा समझकर निहारो हमें
    गंगा मइया यहाँ अब तारो हमें, कष्ट सारे मिटाकर उबारो हमें।

    साथ में सत्य- निष्ठा रहेगी अगर, फिर मिलेगी हमें प्यार की ही डगर
    जब कदम डगमगाएँ हमें थामना, नफरतों का नहीं हो कभी सामना
    कर रहे माफिया अब तुम्हारा खनन, आज उनका यहाँ पर करो तुम दमन
    लोग तुमको यहाँ जो प्रदूषित करें, एक दिन देखना वे तड़पकर मरें।

    आज वातावरण जब घिनौना हुआ, दूर उससे रखो फिर सँवारो हमें
    गंगा मइया यहाँ अब तारो हमें, कष्ट सारे मिटाकर उबारो हमें।

    रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड०
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उ० प्र०)
    मोबा० नं०- 98379 44187

  • नभ में छाए काले मेघ

    नभ में छाए काले मेघ

    kavita

    नभ में छाए काले मेघ.
    झूमती धरती इसको देख.
    बिन नीर प्यासी धरा पर,
    मेघ लाते आशाएं अनेक।

    खेत लहराए अपनी आँचल,
    बागों में आ जाती नई जान.
    रंग-बिरंगी कोमल पुष्पों से,
    छा जाती लबों में मुस्कान.

    हरियाली और खुशहाली,
    अब सुखहाली भी आएगी.
    बरसों से संजोया सपना ,
    वो भी अब पूरी हो जाएगी.

    आज तपी सूखी मिट्टी पर,
    गिरे पानी लेके काली की भेष.
    बिजली जिसका आगमन संदेश.
    देर न करो अब, हे देव अमरेश!
    नभ में छाए काले मेघ.

    संगीता

  • होली पर्व -कुण्डलियाँ

    होली पर्व -कुण्डलियाँ

    होली पर्व पर कुण्डलियाँ ( Holi par Kundaliya) का संकलन हिंदी में रचना आपके समक्ष पेश है . होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है, जो आज विश्वभर में मनाया जाने लगा है। 

    होली पर्व – कुण्डलियाँ

    Holi par kavita
    Holi par kavita

    होली के इस पर्व पर, मेटे सब मतभेद।
    भूल गिला शिकवा सभी, खूब जताये खेद।
    खूब जताये खेद, शिकायत रह क्यों पाये।
    आपस मे रह प्रेम, उसे भूले कब जाये।
    मदन कहै समझाय,खुशी की भर दे झोली।
    जीवन हो मद मस्त, प्यार की खेलें होली।।

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर

    होली की कविता

    होली छटा निहारिए, बरस रहा मधु रंग ।
    मंदिर-मस्जिद प्रेम से, खेल रहे मिल संग ।।
    खेल रहे मिल संग, धर्म की भींत ढही है ।
    अंतस्तल में आज, प्रीत की गंग बही है ।।
    कहे दीप मतिमंद, रहे यह शुभ रंगोली ।
    लाती जन मन पास, अरे मनभावन होली ।।

    -अशोक दीप

    होली पर पारम्परिक कथा

    होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है।