दिलों में जाने क्यों, बाकी न कोई एहसास है। एक भाई को ही दूजे भाई की, जाने क्यों खून की प्यास है। प्रकृति तो उदास बैठी ही थी, अब दिलों का भी मौसम कुछ उदास है।
जवानी आते जाने कहां , चला जाता है बचपन का प्यार। घरवाले ही घरवालों पर, जाने क्यों करते हैं अत्याचार। देख दशा ये मानव की ,प्रकृति भी उदास है। अब दिलों का भी ,मौसम कुछ उदास है ।
आज लोग जलते हैं जाने क्यों, अपनों की कामयाबी देख। बहुत कम हो गया है लोगों में, करना कोई काम नेक। हो रहा प्रकृति का भी ,दोहन अनायास है अब दिलों का भी ,मौसम कुछ उदास है।
उदासीनता से भरी जिंदगी, लोग आज एक दूसरे से दूर हैं। कोई जी रहा है शान से, कोई जीने को मजबूर हैं। दुर्व्यवहार से प्रकृति भी ,बैठी हताश है। अब दिलों का भी ,मौसम कुछ उदास है।
एक दिन आयेगा कभी तो ऐसा, रिश्ते प्रकृति सम खिल जायेंगे। रिश्ते भी महकेंगे और, प्रकृति को भी महाकायेंगे। यही मेरी एक, छोटी सी आस है तब दिलों का भी ना रहेगा, मौसम कुछ उदास है
आत्मीयता का भाव कभी, लोगों के मन में भी तो आयेगा। प्रकृति की भी सेवा होगी, मानव धर्म निभाएगा । प्रकृति ही करती चयन ,कुछ का करती विनाश है। खिल जायेगा वो भी जो दिलों का, मौसम कुछ उदास है।