सम्भल जाओ आज से- प्रिया सिंह
भारत वर्ष की बेटी हूं, समझ गई अपना अधिकार ।
अन्याय नहीं सहन करेंगे, अब मेरी भी वाणी में धार।
अब चाहोगे तुम रोकना हमें , अपने आदतन अंदाज से।
पर रोकने वाले! खुद रुक जाओ, सम्भल जाओ आज से ।
जितना करना था अत्याचार हम पर, उसको हम सह गये।
सहते सहते तेरा दुर्व्यवहार, हम केवल घर तक ही रह गये।
जाना न था हममें भी लावा ,जो जला के रख दे तुझे राख से।
अब रोकने वाले ! खुद रुक जाओ, सम्भल जाओ आज से ।
सोचने की भूल मत करना कि, हम हैं जल की शीतल धार।
प्रज्वलित ज्वाला की ज्योति हम, बहती तेज नदी की धार ।
अब मैंने अपनी वजूद को जाना , तू ये जान ले आज से।
हां रोकने वाले! खुद रुक जाओ, सम्भल जाओ आज से ।