पर्यावरण पर दोहे
पर्यावरण पर दोहे -शंकर आँजणा छह ऋतु, बारह मास हैं, ग्रीष्म-शरद-बरसातस्वच्छ रहे पर्यावरण, सुबह-शाम, दिन-रात // १ // कूके कोकिल बाग में, नाचे सम्मुख मोरमनोहरी पर्यावरण, आज बना चितचोर // २ // खूब संपदा कुदरती, आँखों से तू तोलकह रही श्रृष्टि चीखकर, वसुंधरा अनमोल // ३ // मन प्रसन्नचित हो गया, देख हरा उद्यानफूल खिले … Read more