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  • हम उजाला जगमगाना चाहते हैं -केदारनाथ अग्रवाल

    हम उजाला जगमगाना चाहते हैं -केदारनाथ अग्रवाल

    हम उजाला जगमगाना चाहते हैं -केदारनाथ अग्रवाल

    struggle
    प्रातःकालीन दृश्य


    हम उजाला जगमगाना चाहते हैं
    अब अँधेरे को हटाना चाहते हैं।


    हम मरे दिल को जिलाना चाहते हैं,
    हम गिरे सिर को उठाना चाहते हैं।


    बेसुरा स्वर हम मिटाना चाहते हैं।
    ताल-तुक पर गान गाना चाहते हैं।

    हम सबों को सम बनाना चाहते हैं।
    अब बराबर पर बिठाना चाहते हैं।


    हम उन्हें धरती दिलाना चाहते हैं,
    जो वहाँ सोना उगाना चाहते हैं।

    केदारनाथ अग्रवाल

  • सपनों को साकार करें -प्रेमशंकर रघुवंशी

    सपनों को साकार करें -प्रेमशंकर रघुवंशी

    सपनों को साकार करें -प्रेमशंकर रघुवंशी
    प्रेरणादायक कविता


    आओ, हम सब भारत मां की माटी से श्रृंगार करें!


    यह वह धरती, जिसने हमको निज उत्सर्ग सिखाया है,
    यह वह धरती, जिसने हमको अपना अमिय पिलाया है।
    आज उसी धरती की रक्षा में अपने उद्गार करें!


    इस जीवन-धन से भी प्यारा हमको अपना देश है,
    अलग-अलग हैं पंथ हमारे, किन्तु एक परिवेश है।
    आओ, हम-सब राष्ट्र-धर्म के सपनों को साकार करें!


    स्वतन्त्रता से बड़ा जगत् में और कौन-सा आभूषण,
    स्वतन्त्रता से बड़ा जगत् में और कौन-सा संघर्षण।
    इसीलिए अब स्वतन्त्रता के चरणों में उपहार धरें।


    -प्रेमशंकर रघुवंशी

  • गाँव की महिमा पर अशोक शर्मा जी की कविता

    गाँव की महिमा पर अशोक शर्मा जी की कविता

    गाँव की महिमा पर अशोक शर्मा जी की कविता

    गाँव की महिमा पर अशोक शर्मा जी की कविता

    गांव और शहर


    लोग भागे शहर-शहर , हम भागे देहात,
    हमको लागत है गाँवों में, खुशियों की सौगात।

    उहाँ अट्टालिकाएं आकाश छूती, यहाँ झोपड़ी की ठंडी छाँव।
    रात रात भर चलता शहर जब,चैन शकून से सोता गाँव।

    जगमग जगमग करे शहर, ग्राम जुगनू से उजियारा है।
    चकाचैंध में हम खो जाते,टिमटिमाता गाँव ही न्यारा है।

    फाइव स्टार रेस्त्रां में, पकवान मिलते एक से एक।
    पर गाँवों का लिट्टी चोखा,हमको लगता सबसे नेक।

    बबुआ के जब तबियत बिगड़े, गाँव इकट्ठा होता है,
    पर शहरों का मरीज तो, अक्सर तन्हाई में रोता है।

    पैसा से सब काम होत है, शहर विकसे बस पैसा से,
    खेती गाँव में भी हो जाती, बिन पैसा कभी पईंचा से।

    खरीद खरीदकर सांस लेते, महँगी प्राणवायु शहरों में,
    गाँवों में स्वच्छ वायु मिल जाती, मुफ्त में हर पहरों में।

    जंक फूड जब शहर का खाये, मन न भरे अब बथुआ से,
    गमछा बिछा मलकर खाये, तब जिया जुड़ाला सतुआ से।

    शहर के व्यंजन महंगे होते, कम पैसे में जैसे भीख,
    बिन पैसे मिलती गांवों में, भर पेट खाने को ईख।

    दूध मलाई शहर के खाईं, महँगी पड़ी दवाई,
    गऊँवा के सरसो के भाजी, रोग न कवनो लाई।

    शहर गाँव से आगे बाटे, सब लोग कहते रहते,
    हमको तो गाँव ही भाये, जनाब आप क्या कहते?


    ★★अशोक शर्मा,लक्ष्मीगंज,कुशीनगर, उत्तर प्रदेश★★

  • प्रताप का राज्यारोहण-बाबूलाल शर्मा

    प्रताप का राज्यारोहण-बाबूलाल शर्मा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    मापनी- २२१ २२२, १२२ १२२ २२ वाचिक
    . *प्रताप का राज्यारोहण*
    . १
    सामंत दरबारी, कहे यह कुँवर खल मति मद।
    रक्षण उदयपुर हित, सँभालो तुम्ही राणा पद।
    सौगंध बप्पा की, निभे जब मुगल हो बाहर।
    मेवाड़ का जन जन, पुकारे सजग उठ नाहर।
    . २
    राणा बनो कीका, कुँवर अब स्वजन से अड़ कर।
    महिमा रखें महि भी, हमारी मुगल से लड़ कर।
    भामा सहित सब जन, सनेही त्वरित उठ आए।
    चावँड विजन महका, तिलक कर मुकुट पहनाए।
    . ३
    जय हो भवानी जय, शिवम जय नए राणा जय।
    दीवान शिव के तुम, कहे सब महा राणा जय।
    होगा प्रतापी तव, सुयश शुभ कहे गुरु जन सब।
    गज अश्व भाला धनु, सजाए उठे असि कर तब।
    . ४
    बहु भाँति उत्सव शुभ, मना वह धरा रक्षण का।
    प्रण वीर तत्पर था, चुकाने रहन कण कण का।
    संकल्प राणा ने, किया हित धरा जन हित में।
    है ‘विज्ञ’ ‘शर्मा’ का, नमन जो बसा हर चित में।


    …✍©
    बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
    सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान

  • पृथ्वीराज चौहान पर दोहे – बाबू लाल शर्मा

    पृथ्वीराज चौहान पर दोहे

    (दोहा छंद)

    अजयमेरु गढ़ बींठली, साँभर पति चौहान।
    सोमेश्वर के अंश से, जन्मा पूत महान।।

    ग्यारह सौ उनचास मे, जन्मा शिशु शुभकाम।
    कर्पूरी के गर्भ से, राय पिथौरा नाम।।

    अल्प आयु में बन गए, अजयमेरु महाराज।
    माँ के संगत कर रहे, सभी राज के काज।।

    तब दिल्ली सम्राट थे, नाना पाल अनंग।
    राज पाट सब कर दिया, राय पिथौरा संग।।

    दिल्ली से अजमेर तक, चौहानों की धाक।
    गौरी भारत देश को, तभी रहा था ताक।।

    बार बार हारा मगर, क्षमा करे चौहान।
    यही भूल भारी पड़ी, बार बार तन दान।।

    युद्ध तराइन का प्रथम, हारे शहाबुद्दीन।
    क्षमा पिथौरा ने किया, जान उन्हे मतिहीन।।

    किये हरण संयोगिता, डूब गये रस रंग।
    गौरी फिर से आ गया, लेकर सेना संग।।

    युद्ध तराइन दूसरा, चढ़ा कपट की भेंट।
    सोती सेना का किया, गौरी ने आखेट।।

    राय पिथौरा को किया, गौरी ने तब कैद।
    आँखे फोड़ी दुष्ट ने, बहा न तन से स्वेद।।

    बरदाई मित संग से, करतब कर चौहान।
    लक्ष्य बनाया शाह को, किया बाण संधान।।

    अमर पात्र इतिहास के, राय पिथौरा शान।
    गर्व करे भू भारती, जय जय जय चौहान।।


    © बाबू लाल शर्मा बौहरा ‘विज्ञ’