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  • हाय यह क्या हो गया?- मनीभाई नवरत्न

    हाय यह क्या हो गया?

    हाय यह क्या हो गया?
    महाभारत हो गया ।
    हुआ कैसे?
    एकमात्र दुर्योधन से!
    किसका बेटा ?
    अंधे धृतराष्ट्र का!
    पट्टी लगाई आंखों में
    पतिव्रता गांधारी का।
    शायद कम गई दृष्टि इनकी,
    उद्दंडता जो दुर्योधन ने की ।


    असल कसूरवार कौन?
    जिसने दुर्योधन को गढ़ा।
    जीवन के महत्वपूर्ण घड़ियों में ,
    जो सारे बुरे सबक को पढ़ा ।
    दोषी वे सारे व्यवस्था हैं
    जो देखती हैं सब कुछ ,
    पर होती नहीं पीड़ा ,
    ना प्रतिक्रिया ,ना कुछ ।


    आज ही पल रहे हैं ,
    किशोरों में कुछ दुर्योधन ।
    जिन पर दृष्टि नहीं मां-बाप की,
    चुंकि लगाई गई आंखों में
    मोह की पट्टी ।
    लेकिन दुर्योधन सबक ले रहा
    अब भी सारे व्यवस्था से ।
    फिर से होगा महाभारत
    हम फिर बोलेंगे
    हाय यह क्या हो गया ?

    मनीभाई नवरत्न

  • आशंका- विज्ञ छंद-बाबू लाल शर्मा बौहरा विज्ञ

    विज्ञ छंद
    ~मापनी- २२१ २२२, १२२ १२२ २२ वाचिक

    छंद
    छंद

    आशंका


    यह गर्म लू चलती, भयानक तपिश घर बाहर।
    कुछ मित्र भी कहते,अचानक नगर की आकर।
    आकाश रोता रवि, धरा शशि विकल हर माता।
    यह रोग कोरोना, पराजित मनुज थक गाता।

    पितु मात छीने है, किसी घर तनय बहु बेटी।
    यह मौत का साया, निँगलता मनुज आखेटी।
    मजदूर भूखे घर, निठल्ले स्वजन जन सारे।
    बीमार जन शासन, चिकित्सक पड़े मन हारे।

    तन साँस सी घुटती, सुने जब खबर मौतों की।
    मन फाँस बन चुभती, पराए सुजन गोतों की।
    नाते हुए थोथे, विगत सब रहन ब्याजों के।
    ताले जड़े मुख पर, लगे घर विहग बाजों के।
    .
    बाबू लाल शर्मा,बौहरा,विज्ञ
    सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान

  • प्रेरणा दायक कविता – आगे बढ़े चलेंगे

    प्रेरणा दायक कविता

    प्रेरणा दायक कविता – आगे बढ़े चलेंगे

    यदि रक्त बूंद भर भी होगा कहीं बदन में,
    नस एक भी फड़कती होगी समस्त तन में,
    यदि एक भी रहेगी बाकी तरंग मन में,
    हर एक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे।

    वह लक्ष्य सामने है, पीछे नहीं चलेंग।
    मंजिल बहुत बड़ी है पर शाम ढल रही है,
    सरिता मुखीवों की आगे उबल रही है,
    तूफान उठ रहा है, प्रलयाग्नि जल रही है,
    हम प्राण होम देंगे, हँसते हुए जलेंगे।
    पीछे नहीं हटग, आगे बढ़े चलेंगे।


    अचरज नहीं कि साथी भग जाएं छोड़, भय में,
    घबराएँ क्यों, खड़े हैं भगवान् जो हृदय में,
    धुन ध्यान में फंसी है, विश्वास है विजय में,
    बस और चाहिए व्या, दम एकदम न लेंगे।
    जब तक पहुँच न लेंग, आगे बढ़े चलेंगे।

    प्रेरणा दायक कविता

  • आखिर हम मजदूर है- कविता, महदीप जंघेल

    आखिर हम मजदूर है- कविता, महदीप जंघेल

    मजदूर जिसे श्रमिक भी कहते हैं। मानवीय शक्ति के द्वारा जिसमें दिमागी कार्य,शारीरिक बल और प्रयासों से जो कार्य करने वाला होता है, उसे ही मजदूर कहा जाता है। कार्य करने के उपरान्त जो कार्य को अपनी मेहनत के द्वारा अपनी मानवीय शक्ति को बेच कर करे, उसी का नाम मजदूर कहा गया है।

    1 मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 1 May International Labor Day

    आखिर हम मजदूर है (मजदूर दिवस) विधा -कविता

    हम मजदूर है,
    मजदूरी हमारा काम।
    पत्थर से तेल निकाला हमने,
    नही हमेआराम।
    कंधे अड़ा दे, तो
    हर काम बन जाए,
    हाथ लगा दे,तो
    बड़ा नाम बन जाए।
    मेहनत मजूरी हम करते,
    बड़े से बड़ा काम होता है।
    पसीने की बूंद हम टपकाते,
    औरों का नाम होता है।
    सड़क पुल हमने बनाया,
    दुनिया को हमने सजाया।
    हमे सिर्फ मेहनत मजूरी मिली,
    इनाम और नाम किसी और ने पाया।
    दुनिया का हर कार्य हमने किया,
    विकास का पथ हमने दिया।
    हर कार्य में कंधे लगाया,
    नाम दाम किसी और ने पाया।
    मेहनत पूरी की, फिर भी
    वजूद नही,आखिर हम मजदूर है।
    रोज खाने रोज कमाने को ,
    आखिर हम मजबूर है।
    बडा घर ,बड़ा महल बनाया,
    जीते जी कभी न रह पाया।
    झुग्गी झोपड़ी में रहने को ,
    हम मजबूर है।
    आखिर हम एक मजदूर है।
    हमने सब कुछ किया,
    अपना जीवन समर्पित किया।
    विश्व की प्रगति हेतू,
    तन मन अर्पित किया।
    हम एक मजदूर,
    झोपड़ी में रहने को मजबूर।
    न कोई सुविधा न कोई राहत,
    आखिर हम एक मजदूर।
    न कोई गम ,न कोई दुःख,
    हम साहसी और मजबूत है।
    हमारी मेहनत से ये दुनिया टिका है,
    लाचार नही ,
    हम मेहनतकश मजदूर है।

    महदीप जंघेल
    खमतराई,खैरागढ़

  • परिवार – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    परिवार (family) साधारणतया पति, पत्नी और बच्चों के समूह को कहते हैं, किंतु दुनिया के अधिकांश भागों में वह सम्मिलित वासवाले रक्त संबंधियों का समूह है जिसमें विवाह और दत्तक प्रथा स्वीकृत व्यक्ति भी सम्मिलित हैं।

    परिवार
    १५-मई-विश्व-परिवार-दिवस-पर-लेख-15-May-World-Family-Day

    परिवार – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    परिवार , जीवन का आधार
    परिवार, समाज के उद्भव का आधार

    परिवार से , संस्कृति और पलते संस्कार
    परिवार, धर्म का विस्तार

    परिवार से ये कायनात रोशन
    परिवार से प्रकृति का श्रृंगार

    परिवार राष्ट्र की धरोहर
    परिवार से मिलता एकता को बल

    परिवार से ही रोशन होता यह संसार
    परिवार, मर्यादाओं का विस्तार

    परिवार , अनुशासन का आधार
    परिवार से रोशन होता आशियाँ

    परिवार , ग़मों को साझा करने का आधार
    परिवार, खुशियों को जीने का आधार

    परिवार से मुकम्मल होती ये कायनात
    परिवार से ही सामाजिकता का विस्तार

    परिवार , एक अनुपम उपहार
    परिवार ! परिवार ! परिवार !