Blog

  • नवीन कल्पना करो- गोपालसिंह नेपाली

    नवीन कल्पना करो

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो। तुम कल्पना करो।


    अब घिस गईं समाज की तमाम नीतियाँ,
    अब घिस गईं मनुष्य की अतीत रीतियाँ,
    हैं दे रहीं चुनौतियाँ तुम्हें कुरीतियाँ,
    निज राष्ट्र के शरीर के सिंगार के लिए-
    तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो। तुम कल्पना करो

    जंजीर टूटती कभी न अश्रु-धार से,
    दुख-दर्द दूर भागते नहीं दुलार से,
    हटती न दासता पुकार से, गुहार से,
    इस गंग-तीर बैठ आज राष्ट्र शक्ति की-
    तुम कामना करो, किशोर, कामना करो। तुम कल्पना करो

    जो तुम गए, स्वदेश की जवानियाँ गई,
    चित्तौर के प्रताप की कहानियाँ गईं,
    आजाद देश रक्त की रवानियाँ गईं,
    अब सूर्य-चन्द्र की समृद्धि ऋषि-सिद्धि की-
    तुम याचना करो, दरिद्र, याचना करो। तुम याचना करो…..


    जिसकी तरंग लोल हैं अशान्त सिन्धु वह,
    जो काटता घटा प्रगाढ़ वक्र ! इन्दु वह,
    जो मापता समग्र सृष्टि दृष्टि-बिन्दु वह,
    वह है मनुष्य, जो स्वदेश की व्यथा हरे,
    तुम यातना हरो, मनुष्य, यातना हरो। तुम यातना हरो

    तुम प्रार्थना किए चले, नहीं दिशा हिली,
    तुम साधना किए चले, नहीं निशा हिली,
    इस आर्त दीन देश की न दुर्दशा हिली,
    अब अश्रु दान छोड़ आज शीश-दान से –
    तुम अर्चना करो, अमोघ अर्चना करो। तुम अर्चना करो


    आकाश है स्वतन्त्र है स्वतन्त्र मेखला,
    यह शृंग भी स्वतन्त्र ही खड़ा बना ढला,
    है जल प्रपात काटता सदैव श्रृंखला,
    आनन्द, शोक, जन्म और मृत्यु के लिए-
    तुम योजना करो, स्वतन्त्र योजना करो। तुम योजना करो….

    – गोपालसिंह नेपाली

  • सारवती छंद -विरह वेदना (बासुदेव अग्रवाल)

    सारवती छंद -विरह वेदना

    छंद
    छंद

    वो मनभावन प्रीत लगा।
    छोड़ चला मन भाव जगा।।
    आवन की सजना धुन में।
    धीर रखी अबलौं मन में।।

    खावन दौड़त रात महा।
    आग जले नहिं जाय सहा।।
    पावन सावन बीत रहा।
    अंतस हे सखि जाय दहा।।

    मोर चकोर मचावत है।
    शोर अकारण खावत है।।
    बाग-छटा नहिं भावत है।
    जी अब और जलावत है।।

    ये बरखा भड़कावत है।
    जो विरहाग्नि बढ़ावत है।।
    गीत नहीं मन गावत है।
    सावन भी न सुहावत है।।
    ===================
    लक्षण छंद:-

    “भाभभगा” जब वर्ण सजे।
    ‘सारवती’ तब छंद लजे।।

    “भाभभगा” = भगण भगण भगण + गुरु
    211 211 211 2,
    चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत
    **********************

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • सिंहनाद छंद विनती (बासुदेव अग्रवाल)

    सिंहनाद छंद विनती

    छंद
    छंद

    हरि विष्णु केशव मुरारी।
    तुम शंख चक्र कर धारी।।
    मणि वक्ष कौस्तुभ सुहाये।
    कमला तुम्हें नित लुभाये।।

    प्रभु ग्राह से गज उबारा।
    दस शीश कंस तुम मारा।।
    गुण से अतीत अविकारी।
    करुणा-निधान भयहारी।।

    पृथु मत्स्य कूर्म अवतारी।
    तुम रामचन्द्र बनवारी।।
    प्रभु कल्कि बुद्ध गुणवाना।
    नरसिंह वामन महाना।।

    अवतार नाथ अब धारो।
    तुम भूमि-भार सब हारो।।
    हम दीन हीन दुखियारे।
    प्रभु कष्ट दूर कर सारे।।
    ================

    “सजसाग” वर्ण दश राखो।
    तब ‘सिंहनाद’ मधु चाखो।।

    “सजसाग” = सगण जगण सगण गुरु
    112 121 112 2 = 10 वर्ण
    चार चरण। दो दो समतुकांत
    ********************

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • सुमति छंद (भारत देश) बासुदेव अग्रवाल

    सुमति छंद (भारत देश)

    छंद
    छंद

    प्रखर भाल पे हिमगिरि न्यारा।
    बहत वक्ष पे सुरसरि धारा।।
    पद पखारता जलनिधि खारा।
    अनुपमेय भारत यह प्यारा।।

    यह अनेकता बहुत दिखाये।
    पर समानता सकल बसाये।।
    विषम रीत हैं अरु पहनावा।
    सकल एक हों जब सु-उछावा।।

    विविध धर्म हैं, अगणित भाषा।
    पर समस्त की यक अभिलाषा।।
    प्रगति देश ये कर दिखलाये।
    सकल विश्व का गुरु बन छाये।।

    हम विकास के पथ-अनुगामी।
    सघन राष्ट्र के नित हित-कामी।।
    ‘नमन’ देश को शत शत देते।
    प्रगति-वाद के परम चहेते।।
    =================
    लक्षण छंद:-

    गण “नरानया” जब सज जाते।
    ‘सुमति’ छंद की लय बिखराते।।

    “नरानया” = नगण रगण नगण यगण
    (111 212 111 122)
    2-2चरण समतुकांत, 4चरण।
    ***************

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • जननायक राम / श्रीमती ज्योत्स्ना मीणा

    जननायक राम / श्रीमती ज्योत्स्ना मीणा

    जननायक राम / श्रीमती ज्योत्स्ना मीणा

    रचना विधा – कविता

    shri ram hindi poem.j

    जननायक है राम
    सबके मनमंदिर के ,
    जनपालक हैं राम
    सबके जीवन पथ के ।

    सदा हो प्रणिपात
    श्री राम चरणों में ,
    श्रद्धा और विश्वास
    राम के आदर्शों में ।

    अनूप उदाहरण हैं
    राम मर्यादा बन के ,
    पुरूषोत्तम हैं राम
    हर जनमानस के ।

    हो कितने भी दाग
    भले ही धवल चंद्र में ,
    राम रहे सदा ही
    निष्कलंक जन मन मे ।

    सागर तोड़ दे सीमा
    हिम छोड़ी हिमगिरि ने
    किंतु न तोड़ा विश्वास
    जन जन का राम ने ।

    रचयिता -श्रीमती ज्योत्स्ना मीणा