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  • चल रहा हूँ उस पथ पर – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    चल रहा हूँ उस पथ पर – कविता

    चल रहा हूँ उस पथ पर
    कि मंजिल आसान हो जायेगी
    बढ़ा दिए हैं कदम इस उम्मीद से
    कि राह खुद ब खुद बन जायेगी

    मै डरता नहीं हूँ इस बात से
    कि रास्ते कठिनाइयों भरे होंगे
    मुझे मालूम है , पालकर
    सीने में जोश और लेकर
    उस उम्मीद का साथ

    जो
    मुझे प्रेरित करेगी
    छूने आसमान और
    उस लक्ष्य की ओर मुखरित होगा

    मेरे आदर्श और साथ ही
    मुझे स्वयं को बांधना होगा
    उन सीमाओं में जो
    मुझे गलत राह की ओर
    प्रस्थित न कर दे

    बचना होगा मुझे
    उन कुंठाओं से
    जो बाधा न बन सके
    व्यवधान न हो सके
    मुझे बाँध न सके

    मुझे उन्मुक्त बढ़ना होगा
    चीरना होगा
    सीमाओं को
    आँधियों को
    बंधनों को
    तूफानों को
    व्यवधानों को
    अन्धकार को
    कठिनाइयों को

    छूना होना
    मुझे
    मंजिल को
    अग्रसर रहना होगा

    तब तक
    जब तक
    मै चूम न लूं
    मंजिल के उस दर को

    जो मुझे
    सफल कर सके
    जीवन दे सके

    पूर्ण कर सके मेरा सपना
    कुछ इस तरह
    कि जीतकर मंजिल को
    पा लिया
    मैंने सब कुछ
    मेरी मंजिल है

    प्रकृति की अनुपम छटा
    चारों ओर विचरती
    अनुपम कृतियाँ
    हर पल पलता बढ़ता बचपन
    घरों में खिलती मुस्कराहटें

    संस्कृति व संस्कारों से सजा संसार
    चारों ओर की बहार
    चंचल बचपन
    बूढों के मन में पलता
    बच्चों के लिए प्यार

    पालने में खिलता जीवन
    फूलों की वादियों में
    भंवरों का चहचहाना
    विद्यालयों में संवरता जीवन

    ये सब मुझे भाते हैं
    ये सब मेरी मंजिल के हिस्से हैं

    आओ हम सब मिल
    इस मंजिल की ओर
    कदम बढ़ायें
    स्वयं को जगायें
    स्वयं को जगायें

  • पल पल गिरता – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    पल पल गिरता – कविता

    पल- पल गिरता
    पल- पल उठता
    कुछ -कुछ उजड़ा
    मंजिल मंजिल
    सबकी चाहत
    राग ये होता
    हर- पल पल- पल

    कहाँ ठिकाना
    होगा किस करवट
    उलझा उलझा
    कुछ तो सुलझे
    इसी चाह में
    सुबह से शाम
    हफ़्तों महीने
    यूं ही चलता सफर
    अंत नहीं है
    इस सफर का

    मन को समझाता
    चाहतों पर रोक लगाता
    फिर भी इसको
    आस न दिखती
    भारी पल -पल
    भारी क्षण -क्षण
    सांसें नम हैं
    गम ही गम हैं

    फिर भी आस
    दिखाता जीवन
    रुकता बढ़ता
    बढ़ता रुकता
    चलता जाता
    पल -पल
    क्षण- क्षण

    काश हो ऐसा
    खिलें सभी- तन
    खिलें सभी- मन
    चमकी- चमकी
    खिली सुबह हो
    मिल जाए
    सब को ये जीवन
    खिले चाँदनी
    राह पुष्प भरी हो जाए

    सूना- सूना
    कुछ भी न हो
    चंचल- चंचल
    मंद नदी -सा
    बहता- बहता
    सबका जीवन
    सबसे सब कुछ
    कहता जीवन
    कभी रुपहली
    रात न आये
    खिले चाँद सा

    जीवन जीवन
    कभी न रुकता
    आगे बढ़ता
    पुष्पित करता
    हर -तन हर -मन
    सभी रंग के
    धर्म सजे हों
    सभी रंग के
    कर्म सजे हों
    पल- पल
    पल्लवित होता जीवन
    कभी न रुकता
    कभी न गिरता

    बढ़ता जाए
    सबका जीवन
    अंत सभी का
    मनचाहा हो
    मोक्ष राह में
    बाधा न हो
    मन में
    कोई निराशा न हो
    अंत समय
    कोई आशा न हो

    मोक्ष मार्ग पर
    बढ़ता जीवन
    सबको सबका
    भाता जीवन
    देवतुल्य हो जाए जीवन

    जीवन तुम
    जीवन हो जाओ
    आदर्श धरा पर
    तुम छा जाओ
    जीवन तुम जीवन की आशा
    पूर्ण करो सबकी अभिलाषा

  • सद्व्यवहार – राकेश सक्सेना

    सद्व्यवहार – राकेश सक्सेना

    रिश्ते बेजान से
    मित्र अंजान से
    अपने पराये से
    हो जाते हैं,
    जब सितारे
    गर्दिश में हों।।

    दुश्मन दोस्त
    पराए अपने
    और अपने
    सर पे बिठाते हैं
    जब सितारे
    बुलंदी पर हों।।

    मुंह देखी प्रीत
    दुनियां की रीत है
    धन, क्षणिक खुशी
    सद्व्यवहार
    असल जीत है।।

  • घबराना नहीं है तुमको – कविता

    घबराना नहीं है तुमको – कविता

    रास्ता

    घबराना नहीं है तुमको
    आगे है बढते जाना
    रुकना नहीं है तुमको
    आंधियों से है टकराना

    पड़ेगा तुम पर भी
    आधुनिकता का प्रभाव
    एक ही फूँक से उड़ाकर
    आगे है बढते जाना

    मंजिल तुम्हारी चाहत है
    यह सोच कदम बढ़ाना
    घबराना नहीं है तुमको
    आगे है बढते जाना

    रुकना नहीं है तुमको
    आंधियों से है टकराना
    पीछे जो मुड़कर देख लोगे
    खत्म हो जाओगे

    रास्ते टेढ़े मेढे मगर
    उचाईयों को छूते जाना
    घबराना तनिक भी न तुम
    तुम्हे पर्वतों से है टकराना

    आँखों में हो आशा की चमक
    मन में अंतर्विश्वास जगाना
    घबराना नहीं है तुमको
    आगे है बढते जाना

    रुकना नहीं है तुमको
    आंधियों से है टकराना
    आंधियां भी चलेंगी
    पर्वत भी हिलेंगे

    पर कदम तेरे ए बालक
    कदम दर कदम बढ़ेंगे
    चीरकर हवाओं का सीना
    तुझे है पर्वत पार जाना

    थकान से तुझे क्या लेना
    पतझड को सावन बनाना
    घबराना नहीं है तुमको
    आगे है बढते जाना

    रुकना नहीं है तुमको
    आंधियों से है टकराना

    बनकर तू पृथ्वी
    बनकर तू टीपू
    बनकर तू तात्या
    बनकर तू महाराणा
    कर देश अभिमान
    चरम पर छा जाना

    बनकर तू गाँधी
    बनकर तू लक्ष्मी
    बनकर तू रानी
    बनकर तू इंदिरा
    हो देश पर न्योछावर
    शहीद हो जाना

    घबराना नहीं है तुमको
    आगे है बढते जाना
    रुकना नहीं है तुमको
    आंधियों से है टकराना

  • करो जो बात फूलों की – कविता

    करो जो बात फूलों की – कविता

    गुलाब

    करो जो बात फूलों की
    तो काँटों से गिला फिर क्यों

    करो जो बात जीवन की
    तो मृत्यु से फिर डर है क्यों

    करो जो बात दिन की
    तो रात का भय कैसा

    करो जो बात सुबह की
    तो शाम की स्याह का डर कैसा

    करो जो बात चांदनी की
    तो अन्धकार का भय कैसा

    करो जो बात मित्र की
    तो शत्रु का डर कैसा

    करो जो बात समाज की
    तो व्यक्ति का डर कैसा

    करो जो बात फूलों की – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    करो जो बात प्यार की
    तो घृणा का भय कैसा

    करो जो बात परहित की
    तो स्वयं का दुःख कैसा

    करो जो बात प्रकाश की
    तो अन्धकार का भय कैसा

    साथ हो परमात्मा तो
    जीवात्मा का भय कैसा

    साथ हो ब्रह्मात्मा तो
    मृत्यु का भय कैसा

    जीवन दो धाराओं का नाम है
    एक साथ चलती है
    तो दूसरी सामने से आती है

    जिए इस दम से की
    जीने का मर्म मिल जाए

    धरती पर जीवन ही जीवन खिल जाए