Blog

  • हिंदी संग्रह कविता-खड़ा हिमालय बता रहा है

    खड़ा हिमालय बता रहा है

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    खड़ा हिमालय बता रहा है, डरो न आँधी पानी में।
    खड़े रहो अपने ही पथ पर, कठिनाई – तूफानों में।
    डिगो न अपने पथ से तो फिर, सब कुछ पा सकते प्यारे।
    तुम भी ऊँचे हो सकते हो, छू सकते नभ के तारे।
    अचल रहा जो अपने पथ पर, लाख मुसीबत आने में।
    मिली सफलता उसको जग में, जीने में, मर जाने में।
    जितनी भी बाधाएँ आई, उन सबसे ही लड़ा हिमालय।
    इसीलिए तो दुनिया भर में, हुआ सभी से बड़ा हिमालय।


    सोहन लाल द्विवेदी

  • बम लहरी बम बम लहरी (शिव महिमा)

    बम लहरी बम लहरी (शिव महिमा)

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    शिव शम्भू जटाधारी, इसमें रही क्या मर्जी थारी,
    सर पे जटाएं, जटा में गंगा, हाथ रहे त्रिशूलधारी।
    गले से लिपटे नाग प्रभू, लगते हैं भारी विषधारी,
    असाधारण वेश बना रखा, क्या रही मर्जी थारी।।

    भुत-प्रेत, चांडाल चौकड़ी, करते सदा पूजा थारी,
    राक्षस गुलामी करते सारे, चमत्कारी शक्ति थारी।
    शिवतांडव, नटराज नृत्यकला नहीं बराबरी थारी,
    मस्तक त्रिनेत्र खुले तो प्रभू, हो जाए प्रलय भारी।।

    ब्रह्मा विष्णु देवी देवता भी अर्चना करते हैं थारी,
    पुत्र गणेश प्रथम देवता, पार्वती मां पत्नी थारी।
    हे शिव शंकर बम लहरी प्रजा पीड़ित क्यों थारी,
    बम लहरी बम बम लहरी, बड़ी कृपा होगी थारी।।

    विनती सुनो हे कालजय तीनों लोक है जय थारी,
    कोरोना बाढ़ भूकंप प्रलय से, रक्षा करो थे म्हारी।
    भ्रष्टाचार, महंगाई से भी पीड़ित जन प्रजा थारी,
    भू-मण्डल सुरक्षित कर दो प्रभू कृपा होगी थारी।।

    शिव शम्भू, जय जटाधारी कृपा होगी थारी भारी,
    शिवरात्री तिलक भोग लगे, बलिहारी प्रजा सारी।
    भक्त वश में भगवन् सारे फिर कैसी मर्जी थारी,
    कृपा करो दीनानाथ, विनती करे सब नर नारी।।

    राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान

  • डगमग इंसान चले

    डगमग इंसान चले

    kavitabahar logo
    kavitabahar logo

    कर्म न कर बात करे,डगमग इंसान चले।
    भूल चुका पथ अपना,बेबस हो हाथ मले।।
    रंग नहीं ढंग नहीं,सार्थक संबंध नहीं।
    बोझ बना जीवन भी ,ज्ञान न सत्संग कहीं।।

    चाल चले ये कपटी,बोल बड़े बोल रहा ।
    नित्य नए पाप करे, भीतर से डोल रहा।।
    रोज ठगी खेल करे, भेद नहीं खोल रहा।
    धर्म तजे कर्म तजे, ये सपने तोल रहा।।

    रात टली बात टली,चेत अरे मूर्ख बली।
    जन्म हुआ मानव का,सार्थक कुछ कर असली।।
    डाल मुखौटा मुख पे,और नहीं घूम छली।
    देख रहे राम तुझे,मांग क्षमा सोच भली।।

    —-गीता उपाध्याय’मंजरी’
    रायगढ़ छत्तीसगढ़

  • हिंदी संग्रह कविता-हम अर्चना करेंगे

    हम अर्चना करेंगे

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    हे जन्म-भूमि भारत, हे कर्मभूमि भारत,
    हे वन्दनीय भारत, अभिनन्दनीय भारत,
    जीवन सुमन चढ़ाकर, आराधना करेंगे,
    तेरी जनम-जनम भर, हम वन्दना करेंगे। हम अर्चना करेंगे….


    महिमा महान् तू है, गौरव निधान तू है,
    तू प्राण है, हमारी जननी समान तू है,
    तेरे लिए जिएँगे, तेरे लिए मरेंगे,
    तेरे लिए जनम भर, हम साधना करेंगे। हम अर्चना करेंगे…

    जिसका मुकुट हिमालय, जग जगमगा रहा है,
    सागर जिसे रतन की, अंजलि चढ़ा रहा है,
    यह देश है हमारा, ललकार कर कहेंगे,
    इस देश के बिना हम, जीवित नहीं रहेंगे। हम अर्चना करेंगे..


    जो संस्कृति अभी तक, दुर्जेय-सी बनी है,
    जिसके विशाल मन्दिर, आदर्श के धनी है,
    उसकी विजय-ध्वजा ले, हम विश्व में चलेंगे,
    संस्कृति सुरभि पवन बन, हर कुंज में बहेंगे। हम अर्चना करेंगे..


    शाश्वत स्वतन्त्रता का जो दीप जल रहा है,
    आलोक का पथिक जो अविराम चल रहा है,
    विश्वास है कि पलभर, रुकने उसे न देंगे,
    उस ज्योति की शिखा को, ज्योतित सदा रखेंगे। हम अर्चना करेंगे…

  • हिंदी संग्रह कविता-वह जीवन भी क्या जीवन है

    वह जीवन भी क्या जीवन है

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    वह जीवन भी क्या जीवन है, जो काम देश के आ न सका।
    वह चन्दन भी क्या चन्दन है, जो अपना वन महका न सका।


    जिसकी धरती पर जन्म लिया, जिसके समीर से श्वास चली
    जिसके अमृत से प्यास बुझी, जिसकी माटी से देह पली।


    वह क्या सपूत जो जन्मभूमि के, प्रति कर्तव्य निभा न सका।
    वह जीवन भी क्या जीवन है, जो काम देश के आ न सका।

    मुनिवर दधीचि हो गये अमर जिनकी हड्डियों से बज्र बना।
    संकट समाज का दूर किया देकर पावन शरीर अपना।
    वह मानव क्या समाज के हित, निज प्राण प्रसून चढ़ा न सका।
    वह जीवन भी क्या जीवन


    ऐसे महान् चाणक्य जिन्होंने, चन्द्रगुप्त का सृजन किया।
    अन्यायी राजा को रौंदा, यूनानी शत्रु भगा दिया।
    वह नाविक क्या जो तूफानों में, नौका पार लगा न सका।
    वह जीवन भी क्या जीवन


    राणा का जीवन जीवन था, जिसने महलों को छोड़ दिया।
    रोटियाँ घास की खा वन में, आजादी का संघर्ष किया।
    वह देश प्रेम क्या देश प्रेम जो, कंटक पथ अपना न सका।
    वह जीवन भी क्या जीवन