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  • आया रे आया बसंत आया

    आया रे आया बसंत आया

    आया रे आया बसंत आया
    आया रे आया बसंत आया।
    पेड़-पौधों के लिये खुशहाली लेकर आया।।
    आया रे आया बसंत आया।

    चारों तरफ छायी है खुशियाली।
    पेडो़ पर आयी है नयी हरियाली।।
    आया रे आया बसंत आया।

    आने वाली है रंगो की होली।
    बसंत की खुशी में पशु-पक्षी डोल रहे हैं डाली-डाली।।
    आया रे आया बसंत आया।

    बसंत की खुशी में पौधों पर नये फूल आ रहे बारी-बारी।
    इन नये फूल, पत्तों को देखकर झूम रही दुनिया सारी।।
    आया रे आया बसंत आया।

    किसानों के लिये खुशियाँ लाया।
    घर घर में है हरे रंग का उजाला छाया।।
    आया रे आया बसंत आया।

    पेड़ों के लिये है बसंत नया जीवन लाया।
    पेड़ों पर नये फूल और पत्ती लाया।।
    आया रे आया बसंत आया।

    बंसत को देखकर मुस्कराई जवानी।
    जिस तरफ देखो बसंत के रंगों की ही कहानी।।
    आया रे आया बसंत आया।

    नये नये फूलों ने अपनी सुगन्ध से बगियाँ को चहकाया।
    उसकी सुगन्ध से सारी दुनिया समझ गयी कि बसंत आया।।
    आया रे आया बसंत आया।

    बसंत लाया मस्ताना मौसम और हवा मस्तानी।
    बसंत की हरियाली को देखकर दुनिया हो गयी दीवानी।।
    आया रे आया बसंत आया।

    चारों तरह हो रहा जंगल में बसंत का शोर।
    नाच रहे शेर, वाघ, कोयल और मोर।।
    आया रे आया बसंत आया।।

    किसानों के लिये सुनहरा मौसम आया।
    चारों तरफ हरियाली ही हरियाली लाया।।
    आया रे आया बसंत आया।


    धमेन्द्र वर्मा (लेखक एवं कवि)
    जिला-आगरा, राज्य-उत्तर प्रदेश
    मोबाइल नं0-9557356773
    वाटसअप नं0-9457386364

  • माघ शुक्ल बसंत पंचमी पर कविता

    माघ शुक्ल बसंत पंचमी पर कविता

    माघ शुक्ल की पंचमी,
    भी है पर्व पुनीत।
    सरस्वती आराधना,
    की है जग में रीति।।


    यह बसंत की पंचमी,
    दिखलाती है राह।
    विद्या, गुण कुछ भी नया,
    सीखें यदि हो चाह।।


    रचना, इस संसार की,
    ब्रह्मा जी बिन राग।
    किये और माँ शक्ति ने,
    हुई स्वयं पचभाग।।


    राधा, पद्मा, सरसुती,
    दुर्गा बनकर मात।
    सरस्वती वागेश्वरी,
    हुईं जगत विख्यात।।


    सभी शक्ति निज अंग से,
    प्रकट किये यदुनाथ।
    सरस्वती जी कंठ से,
    पार्टी वीणा साथ।।


    सत्व गुणी माँ धीश्वरी,
    वाग्देवि के नाम ।
    वाणी, गिरा, शारदा,
    भाषा, बाच ललाम।।


    विद्या की देवी बनी,
    दें विद्या उपहार।
    भक्तों को हैं बाँटती,
    निज कर स्वयं सँवार।।


    लक्ष्मी जी भी साथ ही,
    पूजें, कर निज शुद्धि।
    धन को सत्गति ही मिले,

    विमल रहेगी बुद्धि।।

    एन्०पी०विश्वकर्मा, रायपुर


  • आया बसंत- कविता चौहान

    आया बसंत आया बसंत

    आया बसंत, आया बसंत
    छाई जग में शोभा अनंत।
    चारों ओर हरियाली छाई
    जब बसंत ऋतु है आई।
    रंग बिरंगे फूल खिलाए
    खेतों पर सरसों लहराए।
    फूलों पर भोरे मंडराए
    जब बसंत ऋतु है आए।

    सूरज की लाली सबको भाए।
    देख बसंत, शाखाएं लहराए।
    देख नीला आसमा मन हर्षाए।
    जब बसंत अपना रंग बिखराए।

    अलसी की शोभा निराली।
    कोयल कूके डाली डाली।
    देखो कैसी मस्ती है छाई।
    आई, बसंत ऋतु है आई।
    भौंरे गाते है नये नये गान।
    कोकिल छेड़ती मधुर तान।
    है सब जीवों के सुखी प्राण
    इस सुख का ना हो अब अंत।


    आया बसंत आया बसंत
    छाया जग में शोभा अनंत।

    कविता चौहान

  • पुलवामा पर कविता

    पुलवामा पर कविता

    प्रेम दिवस पर पुलवामा में,
    परवानों को प्यार हुआ।
    आज गीदड़ों के हाथों,
    था शेरों का संहार हुआ।।
    कट गई,फट गई,बंट गई वो,
    फिर भी उसको हमदर्दी थी।
    सहज सहेजे थी अब तक,
    वो खून में भीगी वर्दी थी।।
    सिसका सिंदूर, रोई राखी,
    माता जी सांसे भूल गई।
    भाई,बाप और बच्चों की,
    जिंदगी अधर में झूल गई।।
    इंच इंच नापा था सबको,
    जब बेटे हमने सौंपे थे।
    लौटाये तब टुकड़ों में,
    वो कौन से मंजर थौंपे थे।।
    बेशक थे वो टुकड़ों में,
    पर लिपट तिरंगे आए थे।
    अमिट निशानी बनकर वो,
    अब आसमान पर छाये थे।।

    धन्य हुई भारत माता,
    नम नैनों से सत्कार किया।
    लुटा के बेटे माँओं ने,
    भारत मां पर उपकार किया।।

    शिवराज चौहान नांधा, रेवाड़ी (हरियाणा)

  • शिव में शक्ति पर कविता

    प्रस्तुत कविता शिव में शक्ति पर कविता भगवान शिव पर आधारित है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है।

    शिव में शक्ति पर कविता

    शिव मंगल के हेतु हैं,
    किन्तु दुष्ट प्रतिकार।
    शक्ति कालिका ही करे,
    रिपु दिल का संहार।।
    गलता हो तन का कहीं ,
    भाग करे जो तंग।
    तुरत काटते वैद्य हैं,
    व्याधि नाश हित अंग।।
    ऐसे ही माँ कालिका,
    रखतीं मृदुल स्वभाव।
    लेकिन पति आदेश से,
    करतीं रिपु पर घाव।।
    वे समाज के रोग को,
    काट करें संहार।
    स्वच्छ भाग को सौपती ,
    जग के पालनहार।।
    करते हैं भगवान ही,
    रक्षा , पालन खास।
    धर्म, भक्त रिपुहीन हों,
    हो अधर्म का नाश ।।
    सबसे हो शिवभक्ति शुभ,
    पाप कर्म से दूर।
    हर -गौरी को पूजकर,
    सुख पायें भरपूर।।
    जैसे घृत है दुग्ध में,
    दिखता नहीं स्वतंत्र ।
    बिना मथे मिलता नही,
    वैसे ही शिवतंत्र।।
    शिव मे शक्ति रही सदा,
    पृथक नही अस्तित्व ।
    पडी़ जरूरत जब जहाँ ,

    दिखता वहीं सतीत्व।।

    एन्०पी०विश्वकर्मा, रायपुर