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  • भीष्म पितामह जयन्ती पर हिंदी कविता

    भीष्म महाराजा शान्तनु के पुत्र थे महाराज शांतनु की पटरानी और नदी गंगा की कोख से उत्पन्न हुए थे | उनका मूल नाम देवव्रत था। |हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल माघ मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को भीष्म पितामाह की जयंती मनाई जाती है

    भीष्म की विवशता


    कौरव और पांडव के पितामह,
    सत्य न्याय के पारखी !
    चिरकुमार भीष्म ,क्या कर गये यह?
    दुष्ट आततायी दूर्योधन के लिए ,
    सिद्धांतों से कर ली सुलह!
    योग्य लोकप्रिय सदाचारी से ,

    छुड़ा कर अपना हाथ,
    क्यों दिया नीच पापिष्ठ क्रूर दूर्योधन का साथ?,
    सोचता हूँ कि क्या यह सब था अपरिहार्य ?
    या पितामह के लिए सहज स्वीकार्य?
    विदुर संजय कृष्ण सभी न्याय चाहते थे ,
    पर पितामह के विरुद्ध कह नहीं सकते थे!


    कई बार चला वार्ताओं का दौर,
    पर विधि का विधान था कुछ और!
    “पाँच गाँव तो क्या;पाँच अंगुल भूमि भी नहीं दूँगा!
    यदि पांडव युद्ध में विजयी हुए तो हार मान लूँगा।”


    दुष्ट दूर्योधन के दर्प से भरे ये वचन,
    बदल न सके भीष्म पितामह के मन,
    संधि के सभी प्रयास विफल रहे,
    पितामह के प्राण भी विकल रहे,
    युद्ध करना हुआ जब सुनिश्चित,
    होकर पितामह अत्यंत व्यथित,
    दूर्योधन से कहा कुछ इस प्रकार


    युद्ध में चाहे तेरी जीत हो या हार ,
    तेरे पक्ष में ही मैं यह युद्ध करूँगा,
    धृतराष्ट्र को दिये वचन से नहीं हटूंगा,
    अब यह न्याय हो अथवा अन्याय,
    नमक के कर्ज से मैं हूँ निरुपाय,
    दूर्योधन की बात मान ली गई,
    युद्ध में हत हुए शूरवीर कई,
    अंत में युद्ध का अवसान हुआ,


    कौरव का इतिहास लहूलुहान हुआ!
    उभय पक्ष के अनेकों वीर मारे गए,
    संतान अनाथ;सुहागिनों के मांग उजाड़े गए,
    पितामह ने भी इच्छामृत्यु का वरण किया,
    शरशैय्या पर नश्वर देह त्याग दिया!!

    भीष्म पितामह

    भीष्म पितामह मृत्यु शैय्या पर पड़े–पड़े
    विगत दिनों के अपने सारे कर्म
    देखते रहे और होते रहे दुःखित।
    अपनी भूल और अपना पाप
    अशक्त पौरूष के एकान्तता पर
    करता ही है नृत्य।


    तब चाहता रहा होगा
    कि कोई कानों को प्रिय लगने वाली बातें कहे
    और मुझे आश्वस्त करता रहे कि
    मेरे सारे कर्म उचित व व्यवस्थित थे।
    मेरी कही हुई कहानियाँ ही दे दुहरा
    और कह दे कि बड़े अच्छे थे सब।

    मृत्यु शैय्या पर पड़े–पड़े
    देखते हैं वह
    कौरवों और पांडवों को
    एक अनित्य सत्ता का
    पीछा करते हुए।
    क्या वह यह युद्ध सकते थे रोक
    सोचते हैं वह।


    अपने को स्वयं ही प्रश्नों से घेरना–
    स्वयं ही अपने को प्रश्न बना लेना–
    और जिन्दगी भर प्रश्नों को आँखें दिखाना–
    वह भीष्म ही हो सकते थे।
    वह भीष्म ही थे।

    महानता मानवता के गह्वर से
    आता रहा है निकल।
    भीष्म के महानता में
    मानवता का गह्वर
    रहा गायब।


    सुनियोजित ढ़ँग से भीष्म
    राजतंत्रा का रहा पोषक।
    अपने इर्द–गिर्द
    राज का वैभव व सुख लपेटे‚ फँसाये।

  • गुरूपूर्णिमा विशेष दोहे

    गुरूपूर्णिमा विशेष दोहे

    करूँ नमन गुरुदेव को,
    जिनसे मिलता ज्ञान।
    सिर पर आशीर्वाद का,
    सदा दीजिए दान।।१।।
    *****
    हरि गुरु भेद न मानिए,
    दोनों एक समान।
    कुछ गुरु हैं घंटाल भी,
    कर लेना पहचान।।२।।
    *****
    प्रथम गुरू माता सुनो,
    दूजे जो दें ज्ञान।
    तीजे दीक्षा देत जो,
    जग गुरु सीख सुजान।।३।।
    *****
    ज्ञान गुरू देकर करें,
    शिष्यों का कल्याण।
    गुरु सेवा से शिष्य भी,
    होते ब्रम्ह समान।।४।।
    *****
    गुरू परीक्षा लेत हैं,
    शिष्य न जो घबराय।
    श्रद्धा से सेवा करे,
    दिव्य ज्ञान पा जाय।।५।।
    *****


    —-सुश्री गीता उपाध्याय, रायगढ़ छत्तीसगढ़

  • पृथ्वी दिवस: धरती हमारी माँ

    पृथ्वी दिवस: धरती हमारी माँ

    हमको दुलारती है
    धरती हमारी माँ।
    आँचल पसारती है
    धरती हमारी माँ।

    बचपन मे मिट्टी खायी
    फिर हम बड़े हुए।
    जब पाँव इसने थामा
    तब हम खड़े हुए।
    ममता ही वारती है
    धरती हमारी माँ।
    हमको दुलारती है
    धरती हमारी माँ।

    तितली के पीछे भागे
    कलियाँ चुने भी हम।
    गोदी में इसकी खेले,
    दौड़े,गिरे भी हम।
    भूलें सुधारती है
    धरती हमारी माँ।
    हमको दुलारती है
    धरती हमारी माँ।

    अन्न धन इसी से पाकर
    जीते हैं हम सभी।
    पावन हैं इसकी नदियाँ
    पीते हैं जल सभी।
    जीवन संवारती है
    धरती हमारी माँ।
    हमको दुलारती है
    धरती हमारी माँ।

    धरती का ऋण है हम पर
    आओ चुकाएं हम।
    फैलायें ना प्रदूषण
    पौधे लगायें हम।
    सुनलो पुकारती है
    धरती हमारी माँ।
    हमको दुलारती है
    धरती हमारी माँ।


    सुश्री गीता उपाध्याय
    पता:—रायगढ़ (छ.ग.)

  • युवा वर्ग आगे बढ़ें

    युवा वर्ग आगे बढ़ें

    युवा वर्ग आगे बढ़ें

    स्वामी विवेकानंद
    स्वामी विवेकानंद

    छन्द – मनहरण घनाक्षरी

    युवा वर्ग आगे बढ़ें,
    उन्नति की सीढ़ी चढ़ें,
    नूतन समाज गढ़ें,
    एकता बनाइये।

    नूतन विचार लिए,
    कर्तव्यों का भार लिए,
    श्रम अंगीकार किए,
    कदम बढ़ाइए।

    आँधियाँ हैं सीमा पार,
    काँधे पे है देश भार,
    राष्ट्र का करें उद्धार,
    वक्त पहचानिए।

    बहकावे में न आयें,
    शिक्षा श्रम अपनायें,
    राष्ट्र संपत्ति बचायें,
    आग न लगाइए।

    सुश्री गीता उपाध्याय रायगढ़ (छत्तीसगढ़)

  • छतीसगढ़ दाई

    छतीसगढ़ दाई


    चंदन समान माटी
    नदिया पहाड़ घाटी
    छतीसगढ़ दाई।

    लहर- लहर खेती
    हरियर हीरा मोती
    जिहाँ बाजे रांपा-गैंती
    गावै गीत भौजाई।

    भोजली सुआ के गीत
    पांयरी चूरी संगीत
    सरस हे मनमीत
    सबो ल हे सुहाई।

    नांगमोरी,कंठा, ढार
    करधन, कलदार
    पैंरी,बहुँटा श्रृंगार
    पहिरे बूढ़ीदाई ।

    हरेली हे, तीजा ,पोरा
    ठेठरी खुरमी बरा
    नांगपुरी रे लुगरा
    पहिरें दाई-माई।

    नांगर के होवै बेरा
    खाये अंगाकर मुर्रा
    खेते माँ डारि के डेरा
    अर तत कहाई।

    सुंदर सरल मन
    छतीसगढ़ के जन
    चरित्र जिहाँ के धन
    जीवन सुखदाई।

    पावन रीति रिवाज
    अँचरा मां रहे लाज
    सबो ले सुंदर राज
    छत्तीसगढ़ भाई।




    रचना:—सुश्री गीता उपाध्याय रायगढ़