भीष्म महाराजा शान्तनु के पुत्र थे महाराज शांतनु की पटरानी और नदी गंगा की कोख से उत्पन्न हुए थे | उनका मूल नाम देवव्रत था। |हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल माघ मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को भीष्म पितामाह की जयंती मनाई जाती है
भीष्म की विवशता
कौरव और पांडव के पितामह,
सत्य न्याय के पारखी !
चिरकुमार भीष्म ,क्या कर गये यह?
दुष्ट आततायी दूर्योधन के लिए ,
सिद्धांतों से कर ली सुलह!
योग्य लोकप्रिय सदाचारी से ,
छुड़ा कर अपना हाथ,
क्यों दिया नीच पापिष्ठ क्रूर दूर्योधन का साथ?,
सोचता हूँ कि क्या यह सब था अपरिहार्य ?
या पितामह के लिए सहज स्वीकार्य?
विदुर संजय कृष्ण सभी न्याय चाहते थे ,
पर पितामह के विरुद्ध कह नहीं सकते थे!
कई बार चला वार्ताओं का दौर,
पर विधि का विधान था कुछ और!
“पाँच गाँव तो क्या;पाँच अंगुल भूमि भी नहीं दूँगा!
यदि पांडव युद्ध में विजयी हुए तो हार मान लूँगा।”
दुष्ट दूर्योधन के दर्प से भरे ये वचन,
बदल न सके भीष्म पितामह के मन,
संधि के सभी प्रयास विफल रहे,
पितामह के प्राण भी विकल रहे,
युद्ध करना हुआ जब सुनिश्चित,
होकर पितामह अत्यंत व्यथित,
दूर्योधन से कहा कुछ इस प्रकार
युद्ध में चाहे तेरी जीत हो या हार ,
तेरे पक्ष में ही मैं यह युद्ध करूँगा,
धृतराष्ट्र को दिये वचन से नहीं हटूंगा,
अब यह न्याय हो अथवा अन्याय,
नमक के कर्ज से मैं हूँ निरुपाय,
दूर्योधन की बात मान ली गई,
युद्ध में हत हुए शूरवीर कई,
अंत में युद्ध का अवसान हुआ,
कौरव का इतिहास लहूलुहान हुआ!
उभय पक्ष के अनेकों वीर मारे गए,
संतान अनाथ;सुहागिनों के मांग उजाड़े गए,
पितामह ने भी इच्छामृत्यु का वरण किया,
शरशैय्या पर नश्वर देह त्याग दिया!!
भीष्म पितामह
भीष्म पितामह मृत्यु शैय्या पर पड़े–पड़े
विगत दिनों के अपने सारे कर्म
देखते रहे और होते रहे दुःखित।
अपनी भूल और अपना पाप
अशक्त पौरूष के एकान्तता पर
करता ही है नृत्य।
तब चाहता रहा होगा
कि कोई कानों को प्रिय लगने वाली बातें कहे
और मुझे आश्वस्त करता रहे कि
मेरे सारे कर्म उचित व व्यवस्थित थे।
मेरी कही हुई कहानियाँ ही दे दुहरा
और कह दे कि बड़े अच्छे थे सब।
मृत्यु शैय्या पर पड़े–पड़े
देखते हैं वह
कौरवों और पांडवों को
एक अनित्य सत्ता का
पीछा करते हुए।
क्या वह यह युद्ध सकते थे रोक
सोचते हैं वह।
अपने को स्वयं ही प्रश्नों से घेरना–
स्वयं ही अपने को प्रश्न बना लेना–
और जिन्दगी भर प्रश्नों को आँखें दिखाना–
वह भीष्म ही हो सकते थे।
वह भीष्म ही थे।
महानता मानवता के गह्वर से
आता रहा है निकल।
भीष्म के महानता में
मानवता का गह्वर
रहा गायब।
सुनियोजित ढ़ँग से भीष्म
राजतंत्रा का रहा पोषक।
अपने इर्द–गिर्द
राज का वैभव व सुख लपेटे‚ फँसाये।