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  • हिन्दी कुंडलिया: घायल विषय

    हिन्दी कुंडलिया: घायल विषय


    घायल रिपु रण में मिले , शरणार्थी है जान ।
    प्राण बचाने शत्रु का, नीर कराओ पान।
    नीर कराओ पान, सीख मानवता लेकर।
    भेदभाव को त्याग, प्रेम का परिचय देकर।
    कहे पर्वणी दीन, शत्रु फिर होंगे कायल ।
    समर भूमि में देख , करें सब सेवा घायल।।

    घायल करते कटु वचन, हृदय बढ़ाते पीर ।
    शब्द बाण हैं भेदते, जैसे कांँटा तीर।
    जैसे कांँटा तीर, देह को छलनी करते ।
    मीठी वाणी बोल, हृदय की मरहम बनते ।
    कहे पर्वणी दीन, मधुर स्वर मानव मायल ।
    कड़वे नीरस शब्द, करें हैं मनवा घायल।।

    घायल दशरथ बाण से, होकर श्रवण कुमार ।
    सरयू तट पर है गिरे, करते करुण पुकार।
    करते करुण पुकार, दृश्य यह देखे दशरथ।
    बाण शब्दभेदी चला, शोक में भूले हसरत।
    कहे पर्वणी दीन, मोह सुत होकर मायल।
    दिए मातु पितु श्राप, देखकर पुत को घायल ।।

    पद्मा साहू “पर्वणी”
    खैरागढ़ छत्तीसगढ़

  • हिन्दी दोहा मुक्तक : अहिंसा विषय

    हिन्दी दोहा मुक्तक : अहिंसा विषय

    हिन्दी दोहा मुक्तक : अहिंसा विषय

    mahatma gandhi

    देख देश की दुर्दशा,गाँधी छेड़े युद्ध ।
    सत्य अहिंसा मार्ग से, बनकर योगी बुद्ध।
    आंदोलन की राह में, सत्य बना आधार।
    मार खदेड़े शत्रु को, होकर भारी क्रुद्ध।।

    छोड़ें हिंसा राह को, चलें अहिंसा राह ।
    खून खराबा कृत्य से, हो जाएं आगाह।
    हमें बचाना देश हैं, वार्ता करके संधि ।
    हम रखवाले हैं वतन , रक्षा लक्ष्य निगाह।।

    देखो हिंसा बढ़ रहा, दंगा और फसाद।
    आड़ बना कर धर्म को, फैलाते हैं गाद।
    भूल अहिंसा मार्ग को, भूलें खादी मान।
    सूत्र बंधकर एकता, छोड़ें सभी विवाद। ।

    सत्य अहिंसा धर्म है ,जीव दया का द्वार।
    नहीं सताएँ जीव को, बनें सदा आधार।
    ईश्वर अंशी है जगत, सबको दें सम्मान।
    मानवता हिय में बसे , यही जगत का सार।।

    पद्मा साहू “पर्वणी”
    खैरागढ़ राजनांदगांव छत्तीसगढ़

  • हिन्दी कुंडलियां : सरगम विषय

    हिन्दी कुंडलियां : सरगम विषय


    सरगम है जानो सदा, सप्तसुरों का साज।
    पाकर स्वर संगीत को , मिले नयी परवाज ।
    मिले नयी परवाज, साधना सप्त सुरों में।
    करें शारदा वास, हमारे ही अधरों में ।
    कहे पर्वणी दीन, बने स्वर नाद विहंगम ।
    अद्भुत संगम गीत, सजे मधुरिम है सरगम।।

    सरगम के जब सुर छिड़े, जीवन मधुबन मान।
    अंतः उर के वाटिका ,खिले सुमन है जान।
    खिले सुमन है जान, मधुर संगीत सुनाते ।
    प्रीत रंग में रंग, सभी सुर ताल मिलाते ।
    कहे पर्वणी दीन, गीत जीवन का संगम।
    जीवन की झंकार, गीत गाते हैं सरगम।।

    सरगम के सुर सप्त से, बने मधुर संगीत।
    अंतर्मन आवाज दे, गीत जगाए प्रीत।
    गीत जगाए प्रीत , करें ईश्वर आराधन ।
    टूटे हृदय विकार, सदा पुलकित हो तन-मन ।
    कहे पर्वणी दीन, जगत गीतों का संगम ।
    छेड़े सुर संग्राम ,बने सुख दुख के सरगम।।

    पद्मा साहू पर्वणी
    खैरागढ़ छत्तीसगढ़

  • धरती तुझे प्रणाम

    धरती तुझे प्रणाम

    माथ नवाकर नित करूँ , धरती तुझे प्रणाम ।
    जीव जंतु का भूमि ही , होता पावन धाम ।।

    खेले कूदे गोद में , सबकी माँ हो आप ।
    दुष्ट मनुज को भी सदा , देती ममता थाप ।।

    धरती माँ जैसी नहीं , कोई पालन हार ।
    सबका सहती भार ये , महिमा अपरंपार ।।

    वसुंधरा के गर्भ में , रत्नों का भंडार ।
    हीरा सोना कोयला , अमृत कुंड जलधार ।।

    जब – जब असुरों ने किया , भू पर अत्याचार ।
    कष्ट मिटाने भूमि पर , विष्णु लिए अवतार ।।

    खेती करके भूमि पर , सेवा करे किसान ।
    भूख शांत सबका करे , धरती का भगवान ।।

    वन औषधि के रूप में , करती रोग निदान ।
    धरती माँ पीड़ा हरे , और बचाये जान ।।

    धरती के उपकार को , गिन न सकेंगे लोग ।
    दाता बनकर सिर्फ दे , मानव करता भोग ।

    सरहद पर तैनात हैं , सैनिक वीर सुजान ।
    धरती की रक्षा करे , चौकस रहे जवान ।।

    सुकमोती चौहान "रुचि" बिछिया,महासमुन्द

  • दीवारे खिंचने लगी भाई भाई बीच

    दीवारे खिंचने लगी भाई भाई बीच

    दीवारे खिंचने लगी,
    भाई भाई बीच।
    रहा प्रेम अब है कहाॅ,
    काम करे सब नीच।।

    खींचो मत दीवार अब,
    रहने दो कुछ प्यार।
    सभी यही रह जायगा,
    खुशियाँ मिले अपार।।

    भित्ति गिरा दो घृणा की,
    बांट सभी को प्यार ।
    दो दिन की है जिन्दगी,
    हिल मिल रहना यार।।

    प्रभु ने भेजा जगत में,
    सुन्दर करने काम।
    चुने सखा दीवार क्यो।
    फिर क्यो डूबे नाम।।

    आये हो संसार मे,
    प्रभु का भजने नाम।
    नही खड़ी दीवार हो,
    बनते बिगङे काम।।

    घृणा की दीवार गिरे,
    रहे प्रेम परिपूर्ण।
    सुखमय जीवन हो सखा,
    मनुज ध्येय हो पूर्ण।।

    पाले असंतोष नही,
    चुनते क्यो दीवार।
    रहना सब कुछ है यही,
    अच्छा कर व्यवहार।।

    मीत कहाॅ मिलते सखा
    संकट मे दे साथ।
    स्वार्थ की दीवार खड़ी,
    छोङ भागते हाथ।।

    मदद करे हर दीन की,
    तोङ चलो दीवार।
    दुगना होकर भी मिले
    सुन ले मनवा यार।।

    तेरी मेरी क्यो करे,
    जाना पाँव पसार।
    जल्द गिरा दीवार तुम,
    हरि के हाथ हजार ।।

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर