चित्र मित्र इत्र चरित्र
चित्र रचित कपि देखकर, डरती जो सुकुमारि।
नव चरित्र वनवास में, रहती जनक दुलारि।।
मित्र मिले यदि कर्ण सा, सखा कृष्ण सा साथ।
विजित सकल संसार भव, वह चरित्र दे नाथ।।
गन्धी चतुर सुजान नर, बेच रहे नित इत्र।
सूँघ परख कर ले रहे, ग्राहक बुद्धि चरित्र।।
मित्र इत्र सम मानिये, यश सुगंध प्रतिमान।
भव सागर के चित्र ये, सुगम चरित्र सुजान।।
शर्मा बाबू लाल ने, दोहे लिख कर पाँच।
इत्र मित्र चरित्र कहे, शब्द दिए मन साँच।।
बाबू लाल शर्मा बौहरा, विज्ञ
सिकंदरा दौसा राजस्थान