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  • परिश्रम का बीज

    परिश्रम का बीज

    मेहनत हर ईमान की
    यूँ ऐसे रंग लाएगी।
    व्यर्थ में सूखे बीज से
    भी हरितक्रांति आएगी।

    सोच-खोज कब कौन चला
    नियमित पथ हर रोज ढ़ला।
    जिंदा आग जला के देख
    मरके तो हर मुर्दा जला।

    धुंआ बन जब नीर उड़े
    प्यास तभी बुझ पाएगी।
    व्यर्थ में सूखे बीज से
    भी हरितक्रांति आएगी।

    है धूप उजाला साया का
    सच संगत की काया का।
    तू इसमें हाथ भिगोते जा
    श्रम के बीज यूँ बोते जा।

    लालच की है चाह बुरी
    संग बारिश बह जाएगी।
    व्यर्थ में सूखे बीज से
    ही हरितक्रांति आएगी।।

    महेश कुमार

  • 7 दिसंबर अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन दिवस पर लेख

    7 दिसंबर अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन दिवस पर लेख

    अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन दिवस अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन के महत्व के बारे में जागरूकता को बढ़ाता है । यह खास दिन विश्व भर में सामाजिक और आर्थिक विकास के नागरिक उड्डयन के महत्व के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है । इसका उद्देश्य वायु परिवहन में सुरक्षा और दक्षता को बढ़ाना भी है। नागरिक हवाई परिवहन किसी भी देश के बुनियादी ढांचे और परिवहन व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है। आज के दिन को अपनी नागरिक उड्डयन प्रणाली की सराहना और प्रशंसा करते हुए कार्यक्रम आयोजित करते हैं।

    अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन संगठन की स्थापना 7 दिसंबर 1944 को की गई थी। सन 1944 में इस संगठन में अपनी 50 वीं वर्षगांठ के अवसर पर पहले अंतरराष्ट्रीय नागर विमानन दिवस का आयोजन किया। सन् 1966 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित कर 7 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मान्यता दे दी।

  • अपना प्यारा बीटीआई

    अपना प्यारा बीटीआई
    झूमते गाते मौज मनाते
    एक दूजे को खूब हंसाते
    सबके दिलों में थी
    प्यार की गहराई
    आई याद आई अपना प्यारा बीटीआई

    मन तड़प चला था
    जब यार बिछड़ चला था
    आज फिर से खिल उठा हूं
    अपना दिल धड़क चला था
    जब से यह ग्रुप बना
    मिटने लगी तन्हाई
    आई याद आई अपना प्यारा बीटीआई

    यादें ताजा हो गई
    मन की नाराजगी खो गई
    हार चुके थे जो दांव
    वह जीती बाजी हो गई
    जब से यह ग्रुप बना
    दोस्तों की यादें ही छाई
    आई याद आई अपना प्यारा बी टी आई

  • केंवरा यदु मीरा: मन से तृष्णा त्याग

    केंवरा यदु मीरा: मन से तृष्णा त्याग

    मन से तृष्णा त्याग कर,जपे राम का नाम ।
    हो तृष्णा का जब शमन,मिले मोक्ष का धाम ।।

    तृष्णा मन से मारिये ,बन जाता है काल।
    कौरव को ही देख लो, कितना किया बवाल ।।

    जीने की है चाह बहु,रब चाहे वह होय।
    तड़प तड़प कर क्या जियें, काहे मनवा रोय।।

    झूठा कपट फसाद है,तृष्णा का ही मूल।
    तृष्णा को तू मार दे, जगा नहीं कर भूल।।

    लालच सबसे है बुरी कौड़ी तू मत जोड़ ।
    अंत समय तू जा रहा, उस कौड़ी को छोड़ ।।

    धन पाने की चाह ने, बना दिया है चोर ।
    चक्की पीसे जेल में, चले न कोई जोर ।।

    बेटा बेटा तू किया, दिया अंत में छोड़ ।
    कोई तेरा है नहीं, माया से मुख मोड़ ।।

    नेता बन कर तू खड़ा, पाने को सम्मान।
    भरे तिजोरी रात दिन,फंदे झुले किसान ।।

    तृष्णा को पहचान ले,बस बढ़ती ही जाय।
    धन की तृष्णा ये कहे,और अधिक तू आय।।

    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम

  • एक बात है जो भूलती नहीं

    एक बात है जो भूलती नहीं

    उम्र बढ़ रही है अक्ल नहीं अंकों के फेर में ।
    फिर भी इन्सान मशगूल है अपनी अंदरुनी उलटफेर में ।
    वास्तविकता से रूबरू होने का नाम नहीं होता।
    एक दूसरे को चोट पहुंचाए बिना काम नहीं होता।
    क्या थे तुम क्या हो गए नए थे तुम पुराने हो गए।
    होश कब संभलेगा जब अक्ल पर काल मंडराएगा।
    होश में आ जाओ वरना ये भ्रम तुम्हे बार बार डराएगा।
    जीवन के इस नव वसंत का सुख ना भोग पाओगे।
    जीते जी तुम इस परम सुख का अमृत पान न कर पाओगे।
    वसुंधरा के उपवन के तुम एक पुष्प हो।
    जानो अपनी अहमियत तुम अपने आप में एक कल्पवृक्ष हो।
    सदियों से चली आ रही परंपरा को एक क्षण में नष्ट करोगे।
    परंपरा संस्कृति को नष्ट करके तुम कैसे हष्ट पुष्ट रह पाओगे।

    Prakash Singh Bisht
    Khatima udham Singh Nagar Uttarakhand