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  • याराना पर कविता

    याराना पर कविता

    प्रेमी युगल
    प्रेमी युगल

    साहिल पर आना मेरे यार मुझे तेरी याद सताती है
    तेरी बातें मुझे बीते कल की याद दिलाती हैं
    साहिल पर आना मेरे यार मुझे तेरी याद सताती है।
    1)जब तू मुझे कभी बुलाता है
    यादों की सेज पर सुलाता है
    वो प्रेम भरी शय्या मुझको जल्दी सुलाती है
    साहिल पर आना———————-॥

    2)जब तू मुझे कभी भी मिलता है
    यादों का गुलाब सा खिलता है
    खुशबू वही मुझे तेरी बातों में मिल जाती है
    साहिल पर आना ———————॥

    3)जब मैं तेरी बातें दोहराता हूँ
    तुझे मेरे पास ही पाता हूँ
    मुरझाई हुई वो कुसुम कली फिर से खिल जाती है
    साहिल पर आना ———————॥

    4)तेरी वाणी नरम स्वभाव मृदुल
    मुझे दे शिक्षा हर क्षण हर पल
    ये बातें तेरे जीवन की मुझे ,सब राह दिखाती हैं
    साहिल पर आना ———————॥

    5)मन तुझसे मिलना चाहता है
    टूटे दिल सिलना चाहता है
    यादें वही टूटी थी जो फिर से जुड जाती है
    साहिल पर आना ———————॥

    6)तेरा मन मुझसे तो सुंदर है
    मैं बाहर तू मन के अंदर है
    ये बातें तेरे दिल की मुझको पल पल तडपाती हैं
    साहिल पर आना ——————–॥

    7) वो बचपन बडा निराला था
    दिल में हरदम उजाला था
    यही रीत है प्रकृति की ,फिर अंधेरा दिखाती है
    साहिल पर आना ——————–॥

    8)कभी कभी मुलाकातेंं होती हैं
    उजाले के बाद रातें होती हैं
    अंधेरे में भी मुझे तेरी अनुपम छवि मिल जाती है
    साहिल पर आना ——————–॥

    9)ना कपट दिल में ,न छल था
    जो आज नहीं बेशक कल था
    ये खोई हुई मीठी यादें भावुक कर जाती हैं
    साहिल पर आना ——————–॥

    10)अब ना कभी मिलना भी हो
    तो दिल को दिल से मिला लेंगे
    हँसी के आँसुओं के भी बिना
    यादों के फूल खिला लेंगे।।

    ये सब मुसीबतें जीवन के मूल मंत्र सिखाती हैं
    साहिल पर आना मेरे यार मुझे तेरी याद सताती है
    तेरी बातें मुझे बीते कल की याद दिलाती है
    साहिल पर आना मेरे यार मुझे तेरी याद सताती है॥

  • मेरा परिचय पर कविता-विनोद सिल्ला

    मेरा परिचय पर कविता -विनोद सिल्ला

    चौबीस मई तारीख भई,
    उन्नीस सौ सत्ततर सन।
    सन्तरो देवी की कोख से
    विनोद सिल्ला हुआ उत्पन्न।।

    माणक राम दादा का लाडला,
    उमेद सिंह सिल्ला का पूत।
    भाटोल जाटान में पैदा हुआ,
    क्रियाकलाप नाम अनुरूप।।

    सन् उन्नीस सौ बानवे में ,
    हो गया दसवीं पास।
    सादा भोला स्वभाव है,
    उन्नति करने की आस।।

    कक्षा बारहवीं पास कर,
    जे०बी०टी० में लिया प्रवेश।
    मन में थी उत्कांक्षा,
    कि करूंगा कुछ विशेष।।

    तेईस फरवरी तारीख भई,
    उन्नीस सौ निन्यानवे सन।
    शिक्षक की मिली नौकरी,
    सिल्ला परिवार हुआ प्रसन्न।।

    बाईस मार्च तारीख भई,
    सन था दो हज़ार चार।
    विनोद सिल्ला दुल्हा बना,
    बारात पहुँची हिसार।।

    धर्म सिंह जी की सुपुत्री,
    मीना रानी का मिला साथ।
    जिसने महकाया जीवन वो,
    ले के आई नई प्रभात।।

    इक्कीस जुलाई तारीख भई,
    दो हज़ार पांच था सन।
    पुत्र रत्न के रूप में घर,
    अनमोल सिंह हुआ उत्पन्न।।

    बारह जून दो हज़ार सात को,
    चली हवा बङी सुहानी।
    विनोद सिल्ला के घर में,
    जन्मी बेटी लाक्षा रानी।।

    सात जनवरी तारीख भई,
    दो हजार ग्यारह था सन।
    एस एस मास्टर बन गया,
    महका मन का उपवन।।

    बीस अप्रेल तारीख भई,
    दो हजार ग्यारह था सन।
    मेरी धर्मपत्नी मीना रानी,
    गई गणित अध्यापिका बन।।

    -विनोद सिल्ला

  • मुलाकात पर कविता

    मुलाकात पर कविता

    मैं जब भी
    फरोलता हूँ
    अलमारी में रखे
    अपने जरूरी कागजात
    तो सामने आ ही जाती है
    एक चिट्ठी
    जो भेजी थी
    वर्षों पहले
    मेरे दिल के
    महरम ने
    भले ही उससे
    मुलाकात हुए
    हो गए वर्षों
    पर चिट्ठी
    करा देती है अहसास
    एक नई मुलाकात का

    -विनोद सिल्ला©

  • जन अदालत लघु कथा

    जन अदालत लघु कथा

    बचाओ बचाओ बचाओ की आवाज सुन दद्दू झोपडी से बाहर झाँका तो सन्न रह गया।गाँव के पटवारी को वर्दीधारी नक्सली घसीटते हुए ले जा रहे थे।दद्दू को समझते देर न लगी आज फिर हत्या कर दी जाएगी।फिर कानो में आवाज सुनाई दी,”गाँव वालो घर से बाहर निकलो जनअदालत है।”छत्तीसगढ़ के घूर नक्सल क्षेत्रो में यह घटना होते रहता है ग्राम वासी पीपल चौक में एकत्रित हो चुके थे।दद्दू के हाथ पैर काँप रहे थे,धड़कन तेजी थी,हिम्मत करके दद्दू ने फोन लगाया थानेदार ने कहा-“हलो कौन?दद्दू ने काँपते जुबान से कहा-“साहब बछेली से बोल रहा हूँ,जल्दी आओ जन अदालत लग रहा है,इतना कहकर दद्दू ने फोन काट दिया।फिर कानो में आवाज सुनाई दी।गाँव वालो घर से बाहर निकलो,दद्दू अपने झोपडी से बाहर निकला,पग बढाता हुआ पीपल चौक में पहुँच गया।पटवारी के हाथ पैर को बाँधकर पीपल के शाखा में उल्टा लटका दिया गया था।पटवारी का सर नीचे पैर ऊपर था।नक्सलियों के सरदार ने कहा-“बताओ ये पटवारी रिश्वत लेता है या नहीं?,डरे सहमे कुछ लोग कहने लगे-“रिश्वत लेता है साहब।पटवारी के चेहरे से रंग उड़ गया था,वह विनती करने लगा-“मुझे छोड़ दो कभी किसी से रिश्वत नहीं लूँगा मुझे माफ कर दो।नक्सलियों के सरदार ने आदेश दिया इसकी गर्दन काट दी जाए।एक नक्सली अपने हाथों में कुल्हाड़ी रखकर आगे बढ़ने लगा।दद्दू प्राथना करने लगा-“पुलिस वालो जल्दी आओ! तभी दद्दू ने हिम्मत करके कहा-“रुको।’ ये पटवारी मेरे नामांतरण पर मुझसे एक रुपिया नहीं लिया था।पुस्तिका भी बना कर दिया था।कुल्हाड़ी वाला रुक गया।यह बात सुन कर पटवारी सोचने लगा,ये झूठ क्यों बोल रहा है,इससे तो मैं मोटी रकम लिया था।दद्दू नक्सलियों को अपने बातो में उलझा कर समय बढ़ा रहा था।कुछ समय बाद पुलिस गाड़ी की सायरन सुनाई दी।नक्सली जन अदालत छोड़ कर भाग खड़े हुए।पुलिस वाले पटवारी को नीचे उतारे रस्सी खोल कर बोले-“आज तुम बच गए।”पटवारी कुछ न बोल सका मन ही मन दद्दू को शुक्रिया बोल कर पुलिस वालो के साथ चला गया।

    राजकिशोर धिरही
    तिलई,जांजगीर

  • चटनी पर कविता

    चटनी पर कविता

    चटनी लहसुन पीसना,लेना इसका स्वाद।
    डाल टमाटर मिर्च को,धनिया रखना याद।।

    अदरक चटनी रोज ले,भागे दूर जुकाम।
    खाँसी सत्यानाश हो,करते रहना काम।।

    चटनी खाना आम की,मिलकर के परिवार।
    उँगली अपनी चाट ले,मुँह में आवे लार।।

    चंद करेला पीसकर,खाना इसको शूर।
    गुणकारी यह पेट का,रोग रहे सब दूर।।

    इमली चटनी भात में,खाते मानव लोग।
    दूर करे यह कब्ज को,भागे पाचन रोग।।

    चटनी खाना नारियल,हड्डी खूब विकास।
    पानी बढ़िया काम का,हो दूर जलन प्यास।।

    पीस करौंदा चाट ले,दूर करे मधुमेह।
    गुर्दे पथरी ठीक हो,अच्छा हरदम देह।।

    नींबू रस खट्टा लगे,चटनी इसकी खास।
    पेट दर्द आराम हो,सबको आवे रास।।

    राजकिशोर धिरही