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  • शिक्षा पर कविता

    शिक्षा पर कविता

    शिक्षा पर कविता

    शिक्षा का अधिकार सभी को
    सभी शिक्षित कीजिये।
    कहते है महादान इसको
    दान सबको दीजिए।।1।।


    शिक्षा का ये क्षेत्र असीमित
    अनुसंधान कीजिये।
    अधुनातन नवतकनीकों से
    जनकल्याण कीजिये।।2।।


    शिक्षा से कोई भी वंचित
    रहे ना संसार मे।
    शिक्षा की सब अलख जगाएं
    हर एक परिवार में।।3।।
    ???
    शिक्षा जीवन का मूल मंत्र
    सबको सुलभ कराएं।
    मेहनतकश और शोषित भी
    सब जन शिक्षा पाएं।।4।।


    बुनियादी शिक्षा को घर घर
    सब मिलकर पहुँचाओ।
    धर्म जाति मजहब इन सबको
    शिक्षा में ना लाओ।।5।।


    शिक्षा से ही इस समाज को
    सुसंस्कृत बनाईये।
    समृद्धि भी मिलती है इससे
    सर्वजन अपनाइए।।6।।


    शिक्षा ही सम्मान दिलाती
    शिक्षा अवश्य पाएं।
    मिलकर ज्ञान का प्रसार करें
    अज्ञानतम हटाएं।।7।।

    ©डॉ एन के सेठी

  • सार छंद विधान – बाबूलालशर्मा

    सार छंद विधान

    ऋतु बसंत लाई पछुआई, बीत रही शीतलता।
    पतझड़ आए कुहुके,कोयल,विरहा मानस जलता।

    नव कोंपल नवकली खिली है,भृंगों का आकर्षण।
    तितली मधु मक्खी रस चूषक,करते पुष्प समर्पण।

    बिना देह के कामदेव जग, रति को ढूँढ रहा है।
    रति खोजे निर्मलमनपति को,मन व्यापार बहा है।

    वृक्ष बौर से लदे चाहते, लिपट लता तरुणाई।
    चाह लता की लिपटे तरु के, भाए प्रीत मिताई।

    कामातुर खग मृग जग मानव, रीत प्रीत दर्शाए।
    कहीं विरह नर कोयल गाए, कहीं गीत हरषाए।

    मन कुरंग चातक सारस वन, मोर पपीहा बोले।
    विरह बावरी विरहा तन मे, मानो विष मन घोले।

    विरहा मन गो गौ रम्भाएँ, नेह नीर मन चाहत।
    तीर लगे हैं काम देव तन, नयन हुए मन आहत।

    काग कबूतर बया कमेड़ी, तोते चोंच लड़ाते।
    प्रेमदिवस कह युगल सनेही, विरहा मनुज चिढ़ाते।

    मेघ गरज नभ चपला चमके, भू से नेह जताते।
    नीर नेह या हिम वर्षा कर, मन का चैन चुराते।

    शेर शेरनी लड़ गुर्रा कर, बन जाते अभिसारी।
    भालू चीते बाघ तेंदुए, करे प्रणय हित यारी।

    पथ भूले आए पुरवाई, पात कली तरु काँपे।
    मेघ श्याम भंग रस बरसा, यौवन जगे बुढ़ापे।

    रंग भंग सज कर होली पर,अल्हड़ मानस मचले।
    रीत प्रीत मन मस्ती झूमें,खड़ी फसल भी पक ले।

    नभ में तारे नयन लड़ा कर, बनते प्रीत प्रचारी।
    छन्न पकैया छन्न पकैया, घूम रही भू सारी।


    बाबू लाल शर्मा, बौहरा
    सिकंदरा,दौसा, राजस्थान

  • हिमालय पर कविता

    हिमालय पर कविता

    हिमालय पर कविता

    नेपाल, चीन सीमा पर स्थित,
    हिमालय पर्वत की चोटी।
    गंगा यही से निकलती है,
    पत्थरों के साथ बहती है।
    हिमालय को पर्वत राज,
    नाम से जाना जाता है।
    पर्वतों का राजा माउंट एवरेस्ट,
    सबसे ज्यादा ऊंची चोटी है।
    हिमालय पर्वत की ऊंची चोटी,
    मीटर मे है 8,848।
    62 साल पहले भारतीय सर्वे मे,
    नापा गया 29028 फीट।
    आंख हिमालय पर्वत से है,
    आंसू की कोई धार्मिक नहीं।
    शिव के आंखों से जब निकले आंसू,
    पृथ्वी पर गिरकर उगा रुद्राक्ष पेड़।
    सभी लोगों ने बखान किया,
    पर्वतराज हिमालय का।
    सुमेरू से लाये संजीवनी बूटी,
    राम भक्त महाबली हनुमान ने।
    उस पर्वत से मिला संजीवनी,
    सभी लोग गुणगान करने लगे।
    संजीवनी बूटी से जान बचा,
    राम भ्राता लक्ष्मण का,
    आंधी,तूफान आने पर,
    इसकी शरण मे रहते है।
    भारत का मान बढ़ा रहा,
    हिमालय की ऊंची चोटी।
    हिमालय पर्वत के आंचल मे,
    कई पवित्र स्थल हुये।
    जो बद्रीनाथ,केदारनाथ और,
    अमरनाथ नाम से जाने गये।
    भारत की शान हिमालय पर्वत
    हमे इसको बचाना है,
    ये भारत की शान है।

  • पर्यावरण संरक्षण पर कविता

    पर्यावरण संरक्षण पर कविता

    पर्यावरण संरक्षण पर कविता

    ओजोन परत

    दूषित हुई हवा
    वतन की
    कट गए पेड़
    सद्भाव के
    बह गई नैतिकता
    मृदा अपर्दन में
    हो गईं खोखली जड़ें
    इंसानियत की
    घट रही समानता
    ओजोन परत की तरह
    दिलों की सरिता
    हो गई दूषित
    मिल गया इसमें
    स्वार्थपरता का दूषित जल
    सांप्रदायिक दुर्गंध ने
    विषैली कर दी हवा
    आज पर्यावरण
    संरक्षण की
    सख्त जरूरत है

    -विनोद सिल्ला©

  • बिखराव पर कविता

    बिखराव पर कविता

    नफरतों ने
    बढ़ा दी दूरियां
    इंसान-इंसान के बीच

    बांट दिया इंसान
    कितने टुकड़ों में
    स्त्री-पुरुष
    अगड़ा-पिझड़ा
    अमीर-गरीब
    नौकर-मालिक
    छूत-अछूत
    श्वेत-अश्वेत
    स्वर्ण-अवर्ण
    धर्म-मजहब में
    खंड-खंड हो गया इंसान
    नित बढ़ता ही
    जा रहा है बिखराव

    -विनोद सिल्ला©