बिखराव पर कविता

बिखराव पर कविता

नफरतों ने
बढ़ा दी दूरियां
इंसान-इंसान के बीच

बांट दिया इंसान
कितने टुकड़ों में
स्त्री-पुरुष
अगड़ा-पिझड़ा
अमीर-गरीब
नौकर-मालिक
छूत-अछूत
श्वेत-अश्वेत
स्वर्ण-अवर्ण
धर्म-मजहब में
खंड-खंड हो गया इंसान
नित बढ़ता ही
जा रहा है बिखराव

-विनोद सिल्ला©

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