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  • प्रेम दिवस पर कविता

    प्रेम दिवस पर कविता

    चक्षुओं में मदिरा सी मदहोशी
    मुख पर कुसुम सी कोमलता
    तरूणाई जैसे उफनती तरंगिणी
    उर में मिलन की व्याकुलता

    जवां जिस्म की भीनी खुशबू
    कमरे का एकांत वातावरण
    प्रेम-पुलक होने लगा अंगों में
    जब हुआ परस्पर प्रेमालिंगन

    डूब गया तन प्रेम-पयोधि में
    तीव्र हो उठा हृदय स्पंदन
    अंकित है स्मृति पटल पर
    प्रेम दिवस पर प्रथम मिलन

    ………………..

    :-आलोक कौशिक

  • प्रेमगीत

    प्रेमगीत

    प्रेमी युगल
    प्रेमी युगल

    है मुझे स्मरण… जाने जाना जानेमन !
    वो पल वो क्षण
    हमारे नयनों का मिलन
    जब था मूक मेरा जीवन
    तब हुआ था तेरा आगमन
    कलियों में हुआ प्रस्फुटन
    भंवरों ने किया गुंजन

    है मुझे स्मरण… जाने जाना जानेमन !
    तेरा रूप तेरा यौवन
    जैसे खिला हुआ चमन
    चांद सा रौशन आनन
    चांदनी में नहाया बदन
    झूम के बरसा सावन
    फूलों में हुआ परागण

    है मुझे स्मरण… जाने जाना जानेमन !
    तेरे पायल तेरे कंगन
    कभी छन-छन कभी खन-खन
    पड़ें जहां तेरे चरण
    खिल जायें वहां उपवन
    तू शास्त्रों का श्रवण
    तू मंत्रों का उच्चारण

    है मुझे स्मरण… जाने जाना जानेमन !
    तेरा छुअन तेरा आलिंगन
    जैसे चंदन का चानन
    दे कर तुझे वचन
    बन गया तेरा सजन
    तेरे संग लगा के लगन
    तेरे प्यार में हुआ मगन

    है मुझे स्मरण… जाने जाना जानेमन !
    वो अधरों का चुंबन
    हमारे सांसों का संलयन
    तेरे जिस्म की तपन
    मेरे तन की अगन
    अजब सा छाया सम्मोहन
    हम भूल गये त्रिभुवन

    है मुझे स्मरण… जाने जाना जानेमन !
    तेरे मन का समर्पण
    मेरे प्यार का पागलपन
    सुनके तेरा सुमिरन
    मैंने दे दी धड़कन
    प्यार बन गया पूजन
    बना हर गीत भजन

    है मुझे स्मरण… जाने जाना जानेमन !

    :- आलोक कौशिक

  • मैं तो हूं केवल अक्षर पर कविता

    अक्षर पर कविता

    मैं तो हूं केवल अक्षर
    तुम चाहो शब्दकोश बना दो

    लगता वीराना मुझको
    अब तो ये सारा शहर
    याद तू आये मुझको
    हर दिन आठों पहर

    जब चाहे छू ले साहिल
    वो लहर सरफ़रोश बना दो

    अगर दे साथ तू मेरा
    गाऊं मैं गीत झूम के
    बुझेगी प्यास तेरी भी
    प्यासे लबों को चूम के

    आयते पढ़ूं मैं इश्क़ की
    इस कदर मदहोश बना दो

    तेरा प्यार मेरे लिए
    है ठंढ़ी छांव की तरह
    पागल शहर में मुझको
    लगे तू गांव की तरह

    ख़ामोशी न समझे दुनिया
    मुझे समुंदर का ख़रोश बना दो

    :- आलोक कौशिक

  • फागुन माह पर दोहा -मदन सिंह शेखावत

    फागुन माह पर दोहा -मदन सिंह शेखावत

    फागुन मास सुहावना, उड़ती रंग गुलाल।
    खेले अपनी मौज मे,कुछ भी नही मलाल।।1

    फागुन आयो हे सखी, पिया बसे परदेश।
    कुछ भी अच्छा ना लगे,आये नही स्वदेश।।2

    फागुन के हुडदंग मे, बाजे डोल मृदंग।
    नाचे सब मद मस्त हो,मिल गई बहु उमंग।।3

    होली के त्यौहार मे , झूमे सब इटलाय।
    करते सभी धमाल अति,मन मे मौज मनाय।।4

    मौज शौक मे मन रही, होली फागुन मास।
    नही किसी से बैर है,हिल मिल रहते पास।।5

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर स्वरचित

  • अलि पर कविता

    अलि पर कविता

    अलि पुष्प के पराग से,लेता है रससार।
    पुष्प पुष्प पर बैठता , करे सदा गुंजार।।


    अलि करता मधुमास में,फूलों का रसपान।
    कोयल मीठा गात है ,करती है गुण गान।।


    कली कली में बैठता,अलि करता मधुपान।
    मस्त मगन हो घूमता,गुन गुन करता गान।।


    अलि बैठा है डाल पर,ग्रहण करे मकरंद।
    नेह लुटाता फूल पर ,होय कमल में बंद।।


    डाली डाली बैठता, अलि है चित्त चकोर।
    पीकर रस मदमस्त हो,करता है फिर शोर।।

    ©डॉ एन के सेठी