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  • वसंत आया पर कविता दूल्हा बन

    वसंत आया पर कविता

    वसंत आया दूल्हा बन,
    वासंती परिधान पहन।
    उर्वी उल्हासित हो रही,
    उस पर छाया हुआ मदन।।

    पतझड़ ने खूब सताया,
    प्रियतमा बन गई विरहन ।
    पर्ण-वसन सब झड़ गये,
    किये क्षिति ने लाख जतन।।

    ऋतुराज ने उसे मनाया,
    नव कोपलें ,नव पल्हव।
    बनी धरा नव्य यौवना ,
    मही मनमुदित, है मगन।।

    वसुंधरा पर हर्ष छाया ,
    सभी मना रहे हैं उत्सव।
    सोलह श्रृंगारित है धरती
    लग रही है आज दुल्हन।।

    धरती के पर्यायवाची-उर्वी, क्षिति,धरा,मही ,वसुंधरा
    मधुसिंघी
    नागपुर(महाराष्ट्र)

  • पिता पर कविता~बाबूलाल शर्मा

    पिता पर कविता-बूलालशर्मा

    Father's Day
    जून तीसरा रविवार पितृ दिवस || father’s day


    पिता ईश सम हैं दातारी।
    कहते कभी नहीं लाचारी।
    देना ही बस धर्म पिता का।
    आसन ईश्वर सम व्यवहारी।१

    तरु बरगद सम छाँया देता।
    शीत घाम सब ही हर लेता!
    बहा पसीना तन जर्जर कर।
    जीता मरता सतत प्रणेता।२

    संतति हित में जन्म गँवाता।
    भले जमाने से लड़ जाता।
    अम्बर सा समदर्शी रहकर।
    भीषण ताप हवा में गाता।३

    बन्धु सखा गुरुवर का नाता।
    मीत भला सब पिता निभाता!
    पीढ़ी दर पीढ़ी दुख सहकर!
    बालक तभी पिता बन पाता।४

    धर्म निभाना है कठिनाई।
    पिता धर्म जैसे प्रभुताई।
    नभ मे ध्रुव तारा ज्यों स्थिर।
    घर हित पिता प्रतीत मिताई।५

    जगते देख भोर का तारा।
    पूर्व देख लो पिता हमारा।
    सुत के हेतु पिता मर जाए।
    दशरथ कथा पढ़े जग सारा।६

    मुगल काल में देखो बाबर।
    मरता स्वयं हुमायुँ बचा कर।
    ऋषि दधीचि सा दानी होता।
    यौवन जीवन देह गवाँ कर!७

    पिता धर्म निभना अति भारी।
    पाएँ दुख संतति हित गारी।
    पिता पीत वर्णी हो जाता।
    समझ पुत्र पर विपदा भारी।८



    बाबू लाल शर्मा “बौहरा”
    सिकंदरा, दौसा , राजस्थान

  • शारदे माँ पर कविता

    शारदे माँ पर कविता

    kavita-bahar-hindi-kavita-sangrah
    माघ शुक्ल बसंत पंचमी Magha Shukla Basant Panchami


    (1)
    हे शारदे माँ ज्ञान के,भंडार झोली डार दे।
    आये हवौं मँय द्वार मा,मन ज्योति भर अउ प्यार दे।।
    हे हंस के तँय वाहिनी,अउ ज्ञान के तँय दायिनी।
    हो देश मा सुख शांति हा,सुर छोड़ वीणा वादिनी।।

    (2)
    आ फूँक दे स्वर तान ला,जग में सदा गुनगान हो।
    हे मातु देवी शारदे,माँ मान अउ सम्मान हो।।
    मँय मूढ़ अज्ञानी हवँव,कर जोर बिनती मोर हे।
    आ कंठ मा तँय बास कर,माँ ये कृपा अब तोर हे।।

    (3)
    रद्दा मिले सत् ज्ञान के,सद् बुद्धि व्यवहारी जगा।
    मन के सबो सन्ताप ला,घनघोर अँधियारी भगा।।
    माता तहीं हस मोर ओ,मँय छोड़ के नइ जाँव ओ।
    तोरे चरन के रज धरौं,अउ तोर गुन ला गाँव ओ।।
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    छंदकार:-
    बोधन राम निषादराज”विनायक”
    सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
    All Rights Reserved@bodhanramnishad

  • स्वदेश पर कविता-बाबूलालशर्मा

    स्वदेश पर कविता

    करें जय गान!
    शहादत शान!
    सुवीर जवान!
    स्वदेश महान!

    करें गुण गान!
    सुधीर किसान!
    पढ़े इतिहास!
    बचे निज त्रास!

    धरा निज मात!
    प्रणाम प्रभात!
    पिता भगवान!
    सदा सत मान!

    रहे यश गान!
    स्वदेश महान!
    प्रवीर जवान!
    सुधीर किसान!


    ✍©
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा
    सिकंदरा,दौसा,राजस्थान

  • यादें तो यादें है -विनोद सिल्ला

    यादें तो यादें है -विनोद सिल्ला

    आ जाती हैं यादें
    बे रोक-टोक
    नहीं है इन पर
    किसी का नियन्त्रण
    नहीं होने देती
    आने का आभास
    आ जाती हैं
    बिना किसी आहट के
    दे जाती हैं
    कभी गम का
    तो कभी खुशी का
    उपहार
    जब भी
    आती हैं यादें
    स्मृतियों के
    रंगमंच पर
    चल पड़ता है
    चलचित्र-सा
    लौट आते हैं
    पुराने दिन
    पुराना समय
    यादें तो यादें हैं