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  • गज़ल-मौत का क्या है

    गज़ल-मौत का क्या है

    मौत का क्या है कभी तो आ ही जाएगी,,,
    हयात का क्या है कभी तो खत्म हो ही जाएगी,,

    सोचते रहते हैं हम तो उनके बारे में,,,
    इंतजार की घड़ी कभी तो खत्म हो ही जाएगी,,

    अंधेरा ही नज़र आता है हर तरफ,,,
    आसमां की रात कभी तो खत्म हो ही जाएगी,,,

    “सुखवीर” से बेशक प्यार करता नहीं कोई,,,
    नफ़रत जमाने की कभी तो खत्म हो ही जाएगी,,,

    नशे में डूबे रहते हैं दिन भर आंखो के,,,
    मयखाने की शराब कभी तो खत्म हो ही जाएगी,,,
    सुखवीर सिंह हरी
    वाट्स एप नंबर — 9466590453

  • बसन्त ऋतु पर गीत

    बसन्त ऋतु पर गीत

    लगे सुहाना मौसम कितना,
    मन तो है मतवाला।
    देख बसन्त खिले कानन में,
    फूलों की ले माला।।

    शीतलता अहसास लिए हैं,
    चलते मन्द पवन हैं।
    ऋतु बसन्त घर आँगन महके,
    जलते विरही मन हैं।।
    पंछी चहके हैं डाली पर,
    गाते गीत निराला।।
    लगे सुहाना…………………………

    ढाँक पलास खिले तरुवर पर,
    अनुपम छटा बिखेरे।
    सरिता की पावन जल धारा,
    कल-कल करती फेरे।।
    भँवरे गुन-गुन गाते मधुरिम,
    पी कर मधु का प्याला।
    लगे सुहाना…………………………..

    आम्र मंजरी लगे महकने,
    कोयल भी बौराई।
    हरियाली फूलों से शोभित,
    धरती ली अँगड़ाई।।
    मोती जैसे ओस कणों ने,
    पहना नया दुशाला।
    लगे सुहाना…………………………
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    छंदकार:-
    बोधन राम निषादराज”विनायक”
    सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
    All Rights Reserved@bodhanramnishad

  • साधना पर कविता

    साधना पर कविता

    करूँ इष्ट की साधना,
    कृपा करें जगदीश।
    पग पग पर उन्नति मिले,
    तुझे झुकाऊँ शीश।।

    योगी करते साधना,
    ध्यान मगन से लिप्त।
    बनते ज्ञानी योग से,
    दूर सभी अभिशिप्त ।।

    जो मन को हैं साधते,
    श्रेष्ठ उसे तू जान।
    दुनिया के भव जाल में,
    फँसे नहीं वो मान।।

    करो कठिन तुम साधना,
    दृढ़ता से धर ध्यान।
    मन सुंदर पावन बने,
    संग मिले सम्मान।।

    मानव कर्म सुधार चल,
    वही साधना जान।
    हृदय शुद्ध कर नित्य ही,
    करले गुण रसपान।।

    ~ मनोरमा चन्द्रा “रमा”
    रायपुर (छ.ग.)

  • मनोरम छंद विधान- बाबूलाल शर्मा

    मनोरम छंद विधान

    • मापनी – २१२२ २१२२
    • चार चरण का छंद है
    • दो दो चरण सम तुकांत हो
    • चरणांत में ,२२,या २११ हो
    • चरणारंभ गुरु से अनिवार्य है
    • ३,१०वीं मात्रा लघु अनिवार्य
    • मापनी – २१२२, २१२२
    hindi vividh chhand || हिन्दी विविध छंद
    hindi vividh chhand || हिन्दी विविध छंद

    कल

    काल से संग्राम ठानो!
    साहसी की जीत मानो!
    आज आओ मीत सारे!
    काल-कल बातें विचारे!

    सोच ऊँची बात मानव!
    भाव होवें मान आनव!
    आज है तो कल रहेगा!
    सोच कैसे जल बचेगा!

    पुस्तकों से नेह जोड़ो!
    वेद ग्रंथो को न छोड़ो!
    भारती की आरती कर!
    मानवी मन भाव ले भर!

    कंठ मीठे गीत गाना!
    आज को करलें सुहाना!
    आज है तो मानले कल!
    वायु नभ ये अग्नि भू जल!

    चेतना मानव पड़ेगा!
    आज से ही कल जुड़ेगा!
    दूर दृष्टा सृष्टि पालक!
    काल-कल के चक्र चालक!

    आलसी क्यों हो पड़े जन!
    आज ही कल खो रहे मन!
    रुष्ट जन मन को मनाओ!
    आज ही कल को जगाओ!
    . °°°°°°°°°
    आनव~मानवोचित

    बाबू लाल शर्मा,बौहरा
    सिकंदरा,दौसा, राजस्थान

  • महँगाई पर दोहे

    महँगाई पर दोहे

    महँगाई की मार से , हर जन है बेहाल।
    निर्धनभूखा सो रहा,मिले न रोटी दाल।।1।।


    महँगाई डसती सदा,निर्धन को दिनरात।
    पैसा जिसके पास है,होती उसकी बात।।2।।


    महँगाई में हो गया , गीला आटा दाल।
    पूँछे कौन गरीब को,जिसका है बेहाल।।3।।


    सुरसा के मुख सी बढ़े,महँगाई की मार।
    देखो तो चारों तरफ , होता हाहाकार।।4।।


    महँगी हर इक चीज है,बढ़े हुए है भाव।
    डर जाते सब देखके, महँगाई के ताव।।5।।


    आटा चावल दाल सब,हुए सभी हैं दूर।
    महँगाई के दौर में,खुशियां चकनाचूर।।6।।


    सभी ओर होने लगी, महँगाई की बात।
    ओर विषय भूले सभी,लगे रहो दिनरात।।7।।


    महँगाई के राज में , स्वप्न गए सब भूल।
    भर जाए बस पेट ही,बाकी सभी फिजूल।।8।।


    निर्धन निर्धन हो रहा ,धनी बना धनवान।
    महँगाई के दौर में, टूट गए अरमान।।9।।


    प्याज टमाटर छू रहे , आसमान से भाव।
    चूल्हा अब कैसे जले , महँगाई के दाँव।।10।।

    ©डॉ एन के सेठी
    बाँदीकुई(दौसा)राज