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  • लाजवाब जोड़ा कविता

    लाजवाब जोड़ा कविता
    -विनोद सिल्ला

    रहता है
    हमारी लॉबी में
    चिड़ियों का जोड़ा
    इनमें है अत्यधिक स्नेह
    नहीं रहते पल भर
    एक-दूसरे से दूर
    नहीं है इनमें
    सॉरी-धन्यवाद सी
    औपचारिकताएं
    ये बात-बात को
    नहीं बनाते
    नाक का सवाल
    रखते हैं
    एक-दूसरे का ख्याल
    नहीं उतारते
    बाल की खाल
    दोनों में से
    किसी के मुंह
    कभी नहीं सुनी
    ससुराल की शिकायत
    मुझे लगा
    यह जोड़ा
    लाजवाब

  • बहादुरों पर कविता

    बहादुरों पर कविता


    (1)
    तिलक लगा ले माथे पर,
    शस्त्र उठा ले हाथों पर।
    वन्दे मातरम की गूंज से,
    निकल पड़े मैदानों पर।
    (2)
    योगेंद्र अनुज अमोल विजयंत,
    जाबाज सिपाही थे कारगिल पर।
    कर चड़ाई टाइगर हिल में,
    दिखा दी साहस अपने दम पर।
    (3)
    तोपे जब चली रण पर,
    गोले बरस रहे थे उन पर।
    कदम बढ़ रहे थे वीरों की,
    भारी पड़ रहे थे दुश्मनों पर।
    (4)
    रक्षा करते हम मानव को,
    नाज है उन बहादुरों पर।
    कारगिल के इन सपूतों का,
    नमन करूँ इनकी कुर्बानी पर।
    (5)
    आँच न आएं देश में,
    तैनात रहते वो सरहद पर।
    देश के वीर जवानों ने,
    तिरंगा की शान बचाने पर।
    ~~~~~~~~~~~~~
    रचनाकार डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
    पिपरभावना, बलौदाबाजार(छ.ग.)
    मो. 8120587822

  • आलसी पर कविता

    आलसी पर कविता


    मेरे अकेले में भी कोई आसपास होता है।
    तुम नहीं हो पर तुम्हारा आभास  होता है।1।

    बिखर ही जाता है चाहे कितना भी संवारो
    बस खेलते  रहो जीवन एक ताश होता है।2।

    जरूरतमंद तो आ ही जाते हैं बिना बुलाए
    आपकी जरूरत में आए वही ख़ास होता है।3।

    दिनभर भीड़ में शामिल होने के बाद रोज
    मन मेरा हर शाम  जाने क्यूँ उदास होता है।4।

    जागो उट्ठो और नए जीवन का आगाज़ करो
    वरना सोया हुआ शख़्स महज़ लाश होता है।5।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • बचपन के खिलौनों के बदलते ढंग कविता

    बचपन के खिलौनों के बदलते ढंग कविता

    जयतु, जय जवान, जय किसान हो,
    जयतु मातृ-भू, जय भारत महान हो।

    माटी की खुशबू ले चलो वहाँ-वहाँ,
    अपने देश के पहरेदार जहाँ-जहाँ।

    वतन में अंधेरा छाया है अब कहाँ ?
    रोशन करके गया वह सरहद यहाँ।

    नशे में डूब चूके हैं आज के जवान,
    कैसै सम्हलेगा देश, सब हैं नादान।

    है ‘आज़ादी’ क्या ? नहीं वो जानते,
    मनमर्जी को ‘अपना हक़’ वो मानते।

    हुई बहत्तर की अब आज़ादी अपनी,
    देखो नेता, बदली है कथनी-करनी।

    धरम के ठेकेदारों में छिड़ गई जंग,
    बचपन के खिलौनों के बदलते ढंग।

    अब जागो, हे शक्ति की प्रबल-धारा,
    मचे ताण्डव, बिखेर दो मुण्ड-माला।

    चमके सूरज बनके ये भारत अपना,
    अखण्ड, अजेय, अभेद्य हो अनुपमा।

    -शैलेन्द्र कुमार नायक ‘शिशिर’
    सरायपाली, जिला – महासमुंद, छत्तीसगढ़
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  • कर्म पर दोहे -डॉ एन के सेठी

    कर्म पर दोहे -डॉ एन के सेठी

    भाग्य कर्म के बीच में , भाग्य बड़ा या कर्म।
    कर्म बनाता भाग्य को,यही मनुज का धर्म।।

    कर्म करे तो फल मिले,कर्म न निष्फल होय।
    कर्महीन जो ना करे ,जीवन का फल खोय।।

    कर्मगति है बड़ी गहन , इसे न समझे कोय।
    जो समझे सत्कर्म को, निष्कामी वह होय।।

    कर्म बिना इस सृष्टि में , होवे न व्यवहार।
    इससे चलती सृष्टि भी,जो सबका आधार।।

    कर्मअकर्म विकर्म को,समझे जो जीवात्म।
    बन जाता निष्काम वह,पा लेता परमात्म।।

    ©डॉ एन के सेठी